प्रथम दिन शैलपुत्री
पहला दिन नवरात्र का,
भजन करूँ सिर नाय।
शैल पुत्री माँ आइ के,
कारज देहु बनाय।।
पूजा जप समझूँ नहीं,
नाहीं समझूँ ध्यान।
अपने शरण लगाय के,
दो माँ इक वरदान।।
काम क्रोध के फाँस में,
जकड़ा है मन मोर।
लोभी, अधम, अधीर हैं,
घेरे चारो ओर।।
मैं मूरख नादान हूँ,
नहीं बुद्धि नहीं ज्ञान।
अपना प्रेम जगाय के,
कर दो कृपा महान।
दूसरे दिन ब्रह्मचारणी
नवरात्री के दूजे दिन,
माँ ब्रह्मचारिणी आती है।
सदाचार तप संयम देकर,
भक्तों को हर्षाती है।।
बाँये हाथ में लिए कमण्डल,
दायें माला धारे।
तप संयम के बल से माता,
सबका काज सँवारे।।
मैं दोउ कर जोर खड़ा हूँ,
भोग भाव से लाया हूँ।
पूरी कर दो आस हे माता,
दर पे शीश झुकाया हूँ।।
हो विह्वल करूँ पुकार हे
माता मेरी झोली भर दो।
भीतर है घनघोर अंधेरा,
उर को उज्जवल कर दो।।
बीच भँवर में डोल रहा हूँ,
दिखता नहीं सहारा।
सत बुद्धि, सत् ज्ञान से माता,
कर दो नाव किनारा।।
तीसरा दिन चन्द्रघण्टा
नमन करूं मैं चंद्रघंटा को,
हाथ जोड़ सिर नाय।
अवगुण सभी विसार के माता,
लेहु शरण लगाय।।
अष्ट भुजा में अस्त्र विराजे,
सोहे शेर सवारी।
मस्तक पर घट चंद्र विराजे,
महिमा है अति न्यारी।।
भोग खीर का तुझे चढ़ाऊं,
हलवा और मिठाई।
शांति प्रेम का आस लगाऊं,
हाथ जोड़ सिर नाई।।
मन को शांति दे दो माता,
आरत करूँ गुहार।
अवगुण सभी विसार के देवी,
कर सेवक स्वीकार।।
स्वर्ण रूप है दिव्य अलौकिक,
तीन नेत्र दस हाथ।
कमल गदा धनु-वाण चक्र,
सब अस्त्र-शस्त्र हैं साथ।।
आए भक्त जो शरण तिहारी,
करती पूरन काज।
मैं भी शरणागत हूँ
माता रख लो मेरी लाज।।
चौथे दिन मां कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन,
मां कुष्मांडा का ध्यान करूँ।
तेरे यश की गाथा माता,
मन से रोज बखान करूँ।।
जो प्राणी नित् ध्यान करे,
आयु बल बुद्धि पाये।
उसके यश की गाथा माता,
हर युग में लहराये।।
मन से करें जो पूजा-अर्चन,
उसको सब कुछ मिलता।
उसके मन का फूल सदा हीं,
घर आंगन में खिलता।।
विपदा घेरे घोर हे माता,
मेरे उर आ जाओ।
दुख से भी बिह्वल बिलख रहा हूँ,
अब तो कृपा बरसाओ।।
पंचम रूप स्कंदमाता
जगदंबा का पंचम रूप,
स्कंदमाता कहलाई।
स्कन्द देव की माता
होने का है गौरव पाई।।
चार भुजा है सिंह सवारी,
गोद में कार्तिक राजै।
दिव्य रूप है मातु, तुम्हारी
कमल सिन्हासन साजै।।
पीला वस्त्र पहनकर माता,
पीला फूल चढ़ाऊँ।
पीले ही नैवेद्य की माता,
छिन-छिन भोग लगाऊँ।।
पूजा जप-तप ध्यान तुम्हारा,
आज करूँ हे माता।
तुम ही हो जग जननी देवी,
सबकी भाग्य विधाता।।
काम क्रोध को वश में रखते,
सारे भक्त तुम्हारे।
तेरे ही आशीष रहते,
जग में न्यारे-न्यारे।।
जन्म सफल हो जाये माता,
दे दे जो आशीष।
तेरे दर पर आज बिजेंदर,
कहे नवाकर शीश।।
छठे दिन कात्यायनी
षष्टे रूप में हे माता,
कात्यायन आश्रम आई।
कन्या रूप स्वीकार किये तू,
कात्यायनी कहलाई।।
लेकर के आशीष पिता की,
तूने रण को धारा।
की दानव का नाश साथ ही,
महिषासुर को मारा।।
जय जयकार करे हे माता,
सभी देव अरू मानव।
नाम सुनत ही भाग पराये,
प्रेत, अधम अरू दानव।।
मैं हूं अधम अधीर हे माता,
नहीं बुद्धि नहीं ज्ञान।
तेरी दया की भीख मिले तो,
सेवक बनूँ महान।।
तू मेरी महारानी मैया,
मैं बन जाऊं चेरा।
जग की माया छोड़ के डालूँ,
तेरे दर पे डेरा।।
सप्तम रूप माँ कालरात्रि
कालरात्रि है सप्तम रूप माँ,
विनय करूँ कर जोर।
अवगुण सभी विसार के,
लेहु सुधी अब मोर।।
अतिशय क्रोध के कारण मइया
हुई गौर से श्याम।
पापिन को मारे बिना,
करी नहीं विश्राम।।
रक्तबीज को मारे मैया,
खप्पर खून चढ़ाये।
चुन-चुन के मारी तू सबको,
निश्चर बच नहीं पाये।।
वर मुद्रा धारण कर तूने,
भक्तों को वरदान दिया।
सारे क्लेश मिटाकर तूने,
अभय मोक्ष का दान किया।।
भूल हुई जो हमसे माता,
उसको देहु बिसार ।
अवगुण सभी विसार के,
लेहु सुधि हमार।।
आठवें दिन महागौरी
महागौरी है अष्टम रूप माँ,
आज तोहे गोहराऊँ।
मिले न जो आशीष हे माता,
चैन कहाँ से पाऊँ।।
ममता मूर्ति बनी हे माता,
भक्तों का उद्धार किया।
सेवा करी स्वीकार और,
तूने भक्तों को प्यार दिया।।
मानव करे जो तेरी भक्ति,
भवसागर तर जाये।
मन से हो मजबूत भक्त वो,
सकल मनोरथ पाये।।
ममता की जो छांव मिले तो,
धन्य धन्य हो जीवन।
निर्मल हो यह लोक और,
परलोक हो जाए पावन।।
नवरात्रि के नवें दिन, मैं
सिद्धिदात्री का ध्यान करूँ।
तन मन धन सब कुछ तेरा मां,
तेरा तुझे प्रदान करूँ।।
कमल सिंहासन बैठी माता,
भुजा चार अति सोहे।
महिमा अगम अपार हे देवी,
सकल चराचर मोहे।।
शंख चक्र है गदा सुशोभित,
कमल फूल अति भावे।
श्वेत वसन है मातु तुम्हारी,
वाणी मधुर लुभावे।।
महादेव तेरा तप करके,
सभी सिद्धियां पाये।
हुई कृपा तेरी जो माता,
अर्धनारीश्वर कहलाये।।
नवो दिन नवरात्रि में माँ,
नवो रुप का ध्यान किया।
अंतिम दिन हे सिद्धिदात्री मैं,
सब कुछ तुझे प्रदान किया।।
नव प्रसाद नवरस मय भोजन,
नव फल-फूल चढ़ाऊँ।
चरणन शीश झुका के माता,
तेरा ही गुण गाऊँ।।
कन्या पूजन के संग माता,
भैरव भोज कराऊँ।
सबका पूजन करके सबके,
चरणन शीश झुकाऊँ।।
भटक गया हूं पथ से मइया,
मेरा भी उद्धार करो।
मैं अज्ञानी, क्रियाहीन हूँ,
मुझको भव से पार करो।।
सर्व सिद्धिदात्री हे माता,
आपन तेज सम्हारो।
घोर अंधेरा छाया जग में,
आकर तू ही उबारो।।
दया धर्म की बात न बूझे,
लोग अधम अभिमानी।
ज्ञान कर्म से हीन अधम भी,
बनते हैं विज्ञानी।।
बीच भँवर मेँ पड़ा हूं माता,
दिखता नहीं सहारा।
डगमग डोल रही है नइया,
आके करो किनारा।।
कहे बिजेंद्र विह्वल हो माता,
सुन लो करुण पुकार।
त्राहिमाम मैं दीन गुहारूँ,
कर दो भव से पार।।
रचना
बिजेंद्र कुमार तिवारी [बिजेन्दर बाबू ]
संपादक भोजपुरी रोजाना
पता : ग्राम गैरतपुर , थाना मांझी
जिला छपरा (बिहार) - 8413 13
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