रविवार स्पेशल
उर्वशी : पंकज त्रिपाठी
प्रीत का सूना है मंडप, उर्वशी तुम हो कहाँ?
ढूंढता है पुरुरवा हे, उर्वशी तुम हो कहां?
खोजता है वंशिवट में,और मुरली तान में।
खोजता है यमुना तट में, और गोकुल धाम में।
गोपिकाएं सब यहाँ हे,राधिके तुम हो कहां?
ढूंढता है पुरुर्वा, हे उर्वशी तुम हो कहां?
खोजता है पुरजनक में,और अयोध्या के महल।
खोजता है सरयू तट, केवट पखारे थे कमल।
पूछता पशु पक्षियों से, मृगनयन तुम हो कहां?
ढूंढता है पुरुर्वा, हे उर्वशी तुम हो कहां?
खोजता है देवगिरि की, कंदरा में और वन।
खोजता वामांग में और, दक्ष राजा के भवन।
ढूंढता है बन अघोरी, हे सती तुम हो कहां?
ढूंढता है पुरुर्वा हे, उर्वशी तुम हो कहां?
खोजता है हल्दी मेहंदी, जो लगाए हाथ में।
खोजता जो ले रहे हैं, सात फेरे साथ में।
रोकता हर पालकी हे, प्रेयसी तुम हो कहां?
ढूंढता है पुरुर्वा हे, उर्वशी तुम हो कहां?
प्रीत का सूना है मंडप, उर बसी तुम हो कहाँ?
ढूंढता है पुरुरवा, हे उर्वशी तुम हो कहाँ?
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पंकज त्रिपाठी
हरदोई (उ प्र)
9452444081
संपादन: प्रिया पांडेय 'रौशनी'