पिता : समृद्धि सिंह
जीवन के पहले दिन से ही,
पिता ही वो सहारा था,,
जिससे अस्तित्व तो पाया है तुमने,
उसने ही उँगली पकड़ के चलना भी सिखाया था।
बचपन की छोटी-मोटी गलतियों पर ,
डांटने वाला वो पिता ही था ,,
उनके छोटे से मार को तुम,
समझ लेते थे नफरत,,
जबकि वास्तव में वो तुम्हें जीना सिखाता था।
दिनभर दो रोटी के तलाश में,
भटकने वाला वो तुम्हारा पिता ही था,,
ओर जो तुम्हारी ज़िद थी छोटी-छोटी,
अपना पेट काटकर पूरा करने वाला वो पिता ही था।
अपनी कमाई से तो जरूरते पुरी होती है,
तुम्हारा शौक पूरा करने वाला पिता ही था,,
जब पिता साथ हो तो महत्व नही पता होता है,
जा के पूछो बिन बाप के बेटे से,
कि जिंदगी में पिता का महत्व क्या होता है।