चंदा मामा की कटोरी
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काश कि कोई फोन आज ऐसा आता....
मां,पापा की मधुर आवाज में बिटिया दिवस की आशीष दे जाता.....
आत्मसम्मान की बात महसूस करते,
मन मेरा भी खुशी से झूम जाता.....
बचपन की ढेर सारी बातें करती मां पापा से,
मां पापा के मधुर स्पर्श से नन्ही परी बन मन गुलजार हो जाता......
बहुत दिनों से सुकून की नींद नहीं आई,
मां के गोद में वही "चंदा मामा की कटोरी" लोरी सुन हृदय मेरा भी आनंदित हो जाता...
लापरवाह हो गई है तू,अपना ध्यान रख
ऐसी मधुर फटकार सुन,मन मेरा भी मुस्काता.....
अल्हड़ सी बिटिया हूं तेरी,
पग पग पर कोई गलती न हो, यही प्रयास मेरा मन करता जाता....
अपने बाबुल की चिड़ियां थी मैं,
मेरे नए घोंसले में मां पापा का आना प्रसादस्वरूप हो जाता...
मां,पापा के प्रेम की बात है निराली,
मां को चुनरी वाली साड़ी और पापा को शर्ट पहनाते मेरा हाथ भी कुछ संवर जाता....
इज्जत से खुद को इज्जत देती,
थोड़ा मायका में जाने का अधिकार मिल जाता......
पुपुन की दुखती कलम से✍️✍️
संपादन: प्रिया पांडेय 'रौशनी'