💝 सावन तुम ऐसे आना : प्रिया पांडेय 'रौशनी'
सावन अबके बरस तुम ऐसे आना,
हर दिलों की नफ़रतों को मिटाना,
जो रूठें हो उनको मनाना,
अपनी रिमझिम फुहारों से फूल बरसाना।
सावन अबकी बरस तुम ऐसे आना,
तपती धरती की तपन मिटाना,
तेरे वियोग में तड़प रही कब से,
तुम इसकी तड़प मिटाना।
सावन अबकी बरस तुम ऐसे आना,
विरहन क़े मन में मिलन की आस जगाना,
कब तुम आओगे बैठ क़र? बहुत सारी शिकायत है करनी,
विरह में काटे हुए रात-दिन,
सावन क़े पावन महीने में मेरा इंतज़ार कम करना।
सावन अबके बरस तुम ऐसे आना,
किसानों क़े फसलों पर नेह बरसाना,
मेहनत का उनको फल दिलाना,
बुलबुल चहक उठे वन में,
खुशियों से उनका दामन भरना।
अबकी सावन तुम ऐसे आना,
बिन बरसे ना जाना सावन,
विरही चातक की तड़पन से, तू तो नही अनजान हैं,
अब प्रश्न अनेक उमड़ रहे,
सूने मन क़े गलियारों में,
कभी ना वों मुझसे रूठें रिमझिम सावन भरे फुहारों में।
अबकी सावन तुम ऐसे आना,
उमड़ -घुमड़ क़र आना ऐसे आना,
पवन बहे मदमस्त,
झरने क़े जैसे तुम गुनगुनाना।
सावन अबके बरस तुम ऐसे आना,
शिव की भक्ती में सब हो ऐसे लीन,
कोरोना का विष मिटाकर,
अमृत की वर्षा बरसाना।
अबकी सावन तुम ऐसे आना,
चम-चम बिजली चमकती हैं,
मेरी आँखों के इन्तेजार मिटाना,
मिट्टी की सोंधी महक भी लाना,
हर आँखों में खुशियाँ लाना,
पिया मिलन की आस जगाना।
सावन अबकी बरस तुम ऐसे आना।
दिल क़े सूने मन में,
प्रेम-प्रिया का फूल खिलाना।
👏■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■👏
रचना-प्रिया पाण्डेय "रोशनी "
(हुगली, पश्चिम बंगाल)
संपादिका साहित्य
जगत दर्शन न्यूज़