आज ये दोहे सादर
०१
सुन नदिया की वेदना ,
बेहद व्यथित तमाल ।
जलती है जल है नहीं ,
काले तट बेहाल ।।
०२
गलियों में बस धूल है ,
ना पानी ना घास ।
अबकी फिर आया नहीं ,
घर तक खिला कपास ।।
०३
शहरों में विकसित नगर ,
कंकरीट के जाल ।
गाँवों के गज हारते ,
दरक रहे हैं ताल ।।
०४
तन माली मन बावरा ,
मौसम नम आबाद ।
बिन जंगल सब स्वप्न है ,
जरा समझ मनुजाद ।।
०५
बहुत रखी थी सब्र पर ,
लगा न कुछ भी हाथ ।
बना लकीरें कर्म की,
विधि ने खीचीं माथ ।।
©श्याम सुंदर तिवारी (9425927717)