झरोखा
मेरे ड्योढ़ी के झरोखें से
झांकती एक सुनहरी किरण,
अलसुबह मेरी उन्नींदी आँखों को जगाती
सुनहरी किरण,
जाने कब झरोखें के इक कोने मे सज गया
गौरैयाँ का सुंदर घर,
फुदकती गौरैयाँ के चह-चह से प्रफुल्लित हो
गया मेरा मन,
मन की खुशी जब छलक पडी़ तो उकेर दिया ,
मैंने कागज़ पर,
गौरैयाँ का आना शुभ संकेत है,
जैसे शुभ समय का आना,
मन ही मन मैं कहने लगी,
आओ ना मेरी प्यारी चिडिय़ां,
इस झरोखें के बाहर भी है एक दुनिया,
जहाँ सजाई है मैने इक बगीयाँ
बसाओ ना तुम उसमें अपनी दुनियां
फिर से मेरी पलकों में सज जाए सपन सलोनें
इस झरोखें के बाहर, तुम्हारे नन्हें हौसले
के संग,आशा और विश्वास का, फिर से हो जाए जन्म,
नन्हें फरिश्तों के रूप में
आओ ना मेरी प्यारी चिडिय़ा,
बसाओ ना अपनी प्यारी दुनिया,
फिर सुनहरी किरण से सज चहचहा उठें
मेरी ड्योढ़ी का झरोखा।
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छवि एवम रचना
सुनीता सिंह सरोवर
संपादन - प्रिया पाण्डेय 'रोशनी'