प्रस्तुत है हिंदी साहित्य की प्रख्यात युवा कवियित्री प्रिया पांडेय 'रौशनी'जी की प्रेम की एक परिभाषा गढ़ती हुई नई कविता 'वो आखिरी मुलाकात'
वों आख़िरी मुलाक़ात : प्रिया पांडेय 'रौशनी'
वो आख़िरी मुलाक़ात की,
आख़िरी रात,
काली रात संग आख़िरी बात,
बारिश संग रोती मेंरी आँख,
सात जन्मों का निभाना था साथ।
वों आख़िरी मुलाक़ात की,
आख़िरी रात,
पकड़ क़र चलना था,
एक दूजे का हाथ,
तेरे हर एक ख्वाब को आँखों क़े चिलमन पर सजाना था,
रात का कतरा -कतरा बस तूझे ढूंढता।
वों आख़िरी मुलाक़ात की,
आख़िरी रात,
चारों तरफ़ सन्नाटा फैला था,
बस तेरा -मेरा दिल धड़कता था,
रोते थे दोनों ही आँख,
करती थी जुबान शिकायत।
वों आख़िरी मुलाक़ात की,
आख़िरी रात,
सावन का बूँद-बूँद तेरे प्यार को तरसता,
मैं से चलकर हम का था तुझसे रिश्ता,
हसते चेहरे से तो तू वाकिफ़ था,
आँखों की नमी का क्या तूझे एहसास था,
मेरे लबों पर था बस तेरा ही बात।
वों आख़िरी मुलाक़ात की,
आख़िरी रात,
ज़माने को हैं दिल बताता,
जलती हुई रोशनी को बुझा देता,
तुम्हारे बिना नहीं हैं मेंरी दुनिया,
जुदा होकर क्यों सजा देता,
तेरा प्रेम नहीं मेरा हिस्सा,
पर सोचा वों प्रेम की आख़िरी मुलाक़ात और,
आख़िरी रात लिख दूँ।
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प्रिया पाण्डेय "रोशनी "
संपादिका साहित्य
जगत दर्शन न्यूज़