बारिश की बूंदे
मैं इन बारिश की बूंदो में ख़ुद को भीगाने चली हूँ,
रोककर समय को बिताने चली हूँ,
हो गई बावली तेरे प्रेम में इस क़दर,
जले दीपक को फिर जलाने चली हूँ,
बेशक़ तूने मुझें अपना नहीं समझा,
बारिश की हर एक बूंदो ने तेरा होने का एहसास दिलाया हैं मुझें,
उमड़ता -घूमड़ता बादल,
हर वक़्त मेरे दिल में प्रेम के दिये जला उठता हैं,
धरा ने फिर छेड़ा मेरे मन में संगीत,
हमारे प्रेम की शुरुआत ही बारिश की बूंदो की तरह हैं,
जो कभी होती हैं,
फिर मिठी सी तक़रार,
बारिश की बूंदे मन की प्यास मिटा ना पाये,
ऐसे बरसे यें बूंदे,
तन पर जलती जैसे अग्नि,
यादे आयी रात्री में,
बारिश की बूंदे आये जैसे छम -छम,
उनके आने की आहट में,
इक बिरहन करें बारिश की बूंदो में श्रृंगार,
आँखों में हैं काजल जैसे हैं यें काला बादल,
झुमके मेंरी करें शरारत,
पायल छम -छम बाजे,
चुनरी जाये सरक-सरक मन भी बहका जाये इन बारिश की बूंदो में,
बारिश की बूंदो में तुम जरुरी क्या हुए,
हम अधूरे हो गए।
प्रिया पाण्डेय "रोशनी "
सम्पादिका [साहित्य ]
जगत दर्शन न्यूज़