एक शिक्षिका गुरु और प्रशासन ( गुरु पूर्णिमा पर विशेष)
" गुरु पूर्णिमा। एक दिन गुरु के लिए। सबका सर झुक जाता है गुरु के चरणों मे। गुरु एक शब्द परन्तु एक सामान्य से विशेष कर देने वाला शख्त। एक प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति,मुकेश अम्बानी हो या बिल गेट्स। सब का शीश गुरु के चरणों मे । पिता अपने बेटे के सभी प्रश्नों का जवाब देने में अक्षम हो जाता है तो भेजता है दक्षिणा देकर दंड स्वीकार कर गुरु के पास भेजता है अपने पुत्र को । बहुत से गीत , भाषण, लेख, काव्य प्रस्तुत किये जाते है, बड़े बड़े लोगों के द्वारा ,पर ऐसे गुरु को क्या हश्र होता है समाज मे , क्या सम्मान मिलता है समाज मे ! क्या औचित्य रह गया है गुरु का । कितना साथ देते है मंत्री और समाज सेवी के रूप में उभरे शिष्य, जग जाहिर है।
आज हिम्मत नही होती है किसी को आवाज उठाने की आने ही बड़े लीगों के सामने जो कभी शिष्य थे। गुरु एक ऐसा शब्द जो चोट खाए सब कुछ बर्दास्त करता है ताकि यह शब्द अपने सहनशक्ति के कारण बदनाम न हो जाए।
एक ऐसे ही बिहार की शिक्षिका अपने नाम को गुप्त रख कर बयां करती है अपने दर्द जगत दर्शन न्यूज़ के साथ। " - बी के भारतीय
मेरा नाम ------ है। मैं बिहार सरकार के प्राथमिक विद्यालय में पंचायत शिक्षिका के रूप में कार्यरत हूं।जब मैंने शिक्षक के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया था तब मेरे मस्तिष्क में छात्रों को पढ़ाने के तरह-तरह के मनोरंजक तरीके घूमते रहते थे। तब मैंने यह नहीं सोचा था कि एक शिक्षक का जीवन कितना चुनौतीपूर्ण होता है अगर सोचा भी था तो मैंने शिक्षण कार्य संबंधी चुनौतियों और समस्याओं के बारे में सोचा था जो मुझे अपने आस पास दिखती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया मैं शिक्षा की विभागीय कार्यप्रणाली से अवगत हुई खासकर स्थानीय कार्यप्रणाली से। शिक्षकों द्वारा सेवा पुस्तिका संधारण के समय मचती हुई भगदड़ और पैसा वसूली की खबरों ने आश्चर्यचकित कर दिया। हालांकि मुझसे कभी सीधे-सीधे पैसे की मांग नहीं की गई और ना ही मैंने कभी दिया। परंतु महीनों तक मेरा वेतन बाधित होने के बाद मैंने अपने सहकर्मियों से पूछा तो उनके द्वारा हवा के रुख के साथ चलने की सलाह दी गई। हालांकि मेरा विद्रोही मन इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अनेकों बार स्थानीय कार्यालय के चक्कर काटने बाद कारण का पता नहीं चला। कई बार स्थानीय और जिला कार्यालय में आवेदन दिए हैं बहुत भागदौड़ और मशक्कत के बाद कई महीनों बाद अपना वेतन प्राप्त हुआ। फिर से मेरा वेतन बाकी है और कारण इस बार भी मालूम नहीं हैं हालांकि इस बार अधिकारियों द्वारा उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया गया है।
आप बिहार के शिक्षक या शिक्षिका है। ये कहानी आपकी भी है,पर हिम्मत नही है कहने की परंतु ये कथ्य एक बिहार की एक शिक्षिका की है ।