हिंदी साहित्य की की युवा कवियित्रियों में सुमार एक नाम प्रियंका पांडेय 'रौशनी' का है।इनका जन्म उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले के ईशारु ग्राम में हुआ लेकिन पली बढ़ी पश्चिम बंगाल के हुगली में । राजनीति शास्त्र से स्नाकोत्तर की शिक्षा प्राप्त कर इनका रुझान हिंदी काव्य में रहा। ये अपने सहज और सारगर्भित लेखनी के बदौलत बहुत ही जल्द अपना स्थान हिंदी साहित्य में बना ली। प्रस्तुत है इनकी एक रचना बिश्वास। संप्रति अभी 'जगत दर्शन न्यूज़' के साहित्य विभाग की संपादिका है।
◆ विश्वास ◆
मेरे हमदम
क्यूँ अक़सर अपने ही
अनुभवों के भावों के घावों को कुरेद कर
उदास कदमों से दर्द की वादियों में
कहीं दूर निकल जाते हो
जहाँ से वापसी की कोई राह नहीं होती,
मेरा तुम पर यें विश्वास,
जैसे एक भक्त का अपने भगवान पर होता हैं,
जानते हो न---
ठिठुरी हुई इन वादियों में
बेबसी की सर्द हवाओं में हर ओर
बिखरीं पड़ी मिलेंगी तुम्हें कई नज़्म
सहमी सहमी सी
स्मृतियों के आकृति-रूप लिये
तुम्हारे हृदय में प्रकाशित उस पल
स्नेह की रंगीन राशिम
सिसकियों में उलझी हुई उन
शौरिदा सी नज़्म को
तड़पती छटपटाती
सीने से लगाने को बेताब हो जाएंगी,
मेरा तुम पर यें विश्वास,
जैसे ख़ुद की साँसों का धड़कन पर,
की मेंरी धड़कन मेरा साथ ना छोड़ेगी,
मगर तुम रोक लोगे बढ़ाए हुए अपने हाथ
जम जाएंगे एक बार फिर
वो सारे स्नेहिक शब्द बर्फ़ से तुम्हारे होठों पर
जिस तरह आख़री मुलाक़ात की उस शाम
जाते हुये मेरे कदमों को तुम दूर तक
ख़ामोश से देखते रहे
काश! की तोड़ कर अपनी खामोशी
मुझे रोक लिया होता
काश! कर दिया होता मुझपर
अपने सिसकियों से भरें
गले से स्नेहिक शब्दों की बौछारें
काश.............!!!
पर तुमने मेरा विश्वास तोड़ दिया,
ख़ुद को मेरे दिल के करीब ला क़र ख़ुद तुमने मुझें छोड़ दिया,
पर तुम हर वक़्त मेंरी आँखों में रहोगे बनकर मेरे.....
अश्क़ -------------------
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प्रिया पाण्डेय "रोशनी"