★ जज़्बात ★
हर बार रह जाते अधूरे,
फ़िर मैं लिखती हूँ,
हर बार मैं तुझसे ये कहती हूँ,
लिखती नहीं मैं केवल कविता,
लिखती हूँ अपनी दिल की हर बात,
लिखती हूँ अपनी खामोशीयों को, लिखती हूँ मैं अपने जज़्बात।
जो कभी किसी से नहीं कहती,
आज मैं वो बात लिखती हूँ,
तुम्हें ही मैं अपना दिन -रात लिखती हूँ,
पहचानते है हर कोई मुझे,
पर तेरे साथ आने पर जो बदलाव आया,
मैं आज वही अपना अनदेखा रूप लिखती हूँ।
कभी तुम्हें अपना जीत और हार लिखती हूँ,
कभी दूरिया तो कभी मिलन की रात लिखती हूँ,
मैं तेरे प्यार का आगाज़ लिखती हूँ,
आज मैं तेरे हर एक अंदाज़ लिखती हूँ।
तेरे हर बात सरलतम शब्दों में,
आज मैं तेरे हर सरलतम शब्दों को लिखती हूँ,
जितने भी गम मुझे मिले तूने उसे जब्त कर लिए,
आया जबसे तू आँखों से एक अश्क़ बहाने नहीं दिया,
आज मैं तुम्हें अपना फरिश्ता लिखती हूँ।
ज़िन्दगी सवर गयी ज़िन्दगी में तेरे आने से,
आज मैं अपने हर वो राज लिखती हूँ,
दिल के सारे जज़्बात लिखती हूँ,
तुझपे ही मैं अपनी सारी कविताये लिखती हूँ।
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रचना
प्रिया पाण्डेय "रौशनी "
संपादिका
जगत दर्शन साहित्य