प्रकृति
हैं यह पहली किरण की आवाज़,
या है यह प्रकृति का इक अनोखा रंग,
ख़ुद हीं रचनाकार हैं यह प्रकृति,
जो हर रोज रचती है एक नव -संस्करण,
प्रकृति करती हैं विमोचन!,
प्रकृति मुझें प्रेम है तेरे हर एक रंग से,
नदियों में बहती पानी से,
तेरी शीतल भरी छाँव से,
तेरी मनमोहनी धूप से,
तेरी गोद में बढ़े हर पौधों से,
मनमोहक नजारों से और तेरी तेरी बदलती सुबह शाम से,
कभी सुखी धरती धूल उड़ाती है,
तो कभी चारों तरफ़ हरियाली छा जाती हैं,
कभी सूरज की जग -मग रोशनी तो,
कभी रात में चाँद तारों का टिम -टिमाना,
गगन में उड़ते सारे पंक्षी,
जंगलो में विचरण करें जानवर,
भूमि पर रेंगते हैं छोटे जीव,
प्रकृति को हम जानते हैं,
फ़िर भी रह जाती हैं वो अनजानी,
सच वो कितनी सरलता से हर बात को समझाती हैं,
हमारी सोच झुक जाती हैं उनके आगे,
पर्वत भी देता संदेश डटे रहो मेंरी भाती,
मुझें प्रेम हैं अपनी प्रकृति से,
हर एक सजीव, जानवर, पंक्षी,
पेड़ -पौधों, तालाब, नदिया, पर्वत, पहाड़, बरसात, धरती, गगन, सागर, खेतो, की हरियाली से,
क्यों की हमारा आधार हैं प्रकृति।
कवयित्री
प्रिया पाण्डेय "रोशनी "