काश कि ऐसा होता
काश, कि ऐसा होता
वक़्त थोड़ा पीछे लौटता
और हम अपनी नादानियों की
भरपाई कर पाते ।
बोलो तुम भी यही चाहते हो ना !
कितना अच्छा होता,
अगर जिन्दगी की किताब
ख़ुद लिखने को मिल जाती
तो जानते हो ?
मैं हर पन्ना तुम्हारे नाम कर देती
जिसमें तुम्हारा ज़िक्र होता
और इक जन्म तो क्या ?
हर जन्म हूँ तुम्हारी लिख देती।
अफ़सोस वो किताब..
किस्मत की दहलीज पर
लिखी जाती है।
जहाँ मर्जी अपनी नहीं
नीयति की चलती हैं
और वक़्त,वो तो
ना ठहरता है ना लौटता है
जो थाम लूँ उसकी बाँहें
और कहूँ मत जा उसे आने दे,
जिसके लिए ये दिल
फिर से धड़कना मान गया है
बोलो आओगे ना !
गर वक़्त नहीं ठहरा तब भी।
इन यादों को क्या कहूँ ?
जो जाती ही नहीं
दिल के दहलीज से,
जैसे धरणे पर बैठ गई हो
तुम्हें अंक में लेकर ।
जब तक साँसों की डोर
तब तक हमारे #प्रीति की गाथा
लिखने को मुझे
उकसाते रहने के लिए।
तुम्हीं बोलो..
कैसे लिखूँ हृदय की गहन पीड़ा
जिसे पढ़कर दुनियाँ
तुम पर अँगुली उठाए
उस दोष के लिए
जो तुमनें कभी किया ही नही...........
यादें हैं कि जाती नहीं और वक़्त कभी ठहरता नहीं..
हाथ की चंद लकीरों के आगे नसीब कभी बदलता नहीं..
साँसों से बनती नहीं और प्यार तेरा तड़पाता है..
दिल धड़कना छोड़ भी देता पर ख़्याल तेरा धड़काता है..
कवियित्री
प्रीति मधुलिका
पटना बिहार