काव्य जगत
अरमान
बीते हुए लम्हों की कूछ बात अभी बाकी हैं
वो आएँगे थामें जिगर कूछ याद अभी बाकी हैं
चलें गए यूँ बेसहारा करके मगर पर
उनसे कुछ फरियाद अभी बाकी हैं
जाना हैं तो तुम भी चली जाओ मगर
पर याद रखना मेरा एहसान अभी बाकी हैं
दुनिया में आते हैं सभी जाने के लिय मगर
दुनिया का इतिहास अभी बाकी हैं
मिलते हैं यहाँ सभी बिछुड़ जाने के लिय मगर
मिलने की पैगाम अभी बाकी हैं
मिलना जिनसे चाहा था अजनबी मगर
उस निगहवान का आना अभी बाकी हैं
काव्य दर्पण
कवि
अजय सिह अजनबी
छपरा