*** बेटी ****
जगत की शान है बेटी
जगत का अभिमान है बेटी
मत कर तू अपमान
मत कर तू अपमान
तू क्या जानै तू क्या समझे
बेटी का मान
कभी दुर्गा बन दुष्टों का संहार किया
कभी रानी लछमी बन अग्रेजों पर बार किया
तू क्या जाने
हाडा रानी वन अपने सर को काट दिया
कभी पद्मावत वन अग्नि का वरण किया
जगत में बेटी ही महान
जगत में बेटी है महान
मत कर तू अपमान
गर बेटी ना होती तो
बहू कहाँ से आती ये
जीवन यूँही सुनी रह जाती
ना बसता फिर संसार इसलिए
बेटी है महान जगत में
बेटी है महान
मत कर तू अपमान
आज भी बेटी यूँही तड़पाई जाती
कहीं कहीं सताई जाती
दहेज रूपी अग्नि में
जलाई जाती
आज अजनबी करें पुकार
बेटी जगत की अभिमान
बेटी जगत की अभिमान
मत कर तू अपमान
मत कर तू अपमान
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कवि
अजय सिंह अजनबी
छपरा बिहार