मैंने जो देखा
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मैंनें जमाना को बदलतें देखा
भाई को भाई से लड़तें देखा
कभी अपनों को बिछतें देखा
घर जमीन के लिये लड़तें देखा
रोज रोज कोर्ट में जाते देखा
जमा पूँजी को खत्म होते देखा
अब कहीं दिखती नहीँ कही
वो प्यार मुहब्बत जो कभी मैं
आपस में कभी मिलतें देखा
जमाना को बस बदलतें देखा
आज गैर तो गैर हैं ही आज
अपनों को भी बस लड़तें देखा
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अजय सिंह अजनबी
छपरा बिहार