........कल्पना .........
हमार कल्पना के एक फूल बारू तू
हमार कल्पना के एक राज बारू तू
पर डरिला
तोहरा के फूल कहे से
कहीं तू नाराज ना हो जा
खिलत फूल कहीं तू मुरझा ना जा
बाकिर इतना हम जानिला
तू नाराज हो के भी हमरा संगे मूस्कैबू
मुरझा के भी तू फेरू फूल बन जई बू
काहे की
हमार कल्पना खाली कल्पना नईखे
सच्चाई बा जिनगी के
जईसे
कल्पना पर ई संसार टिकल बा
बैसही
कल्पना पर हम जियत बानी
बाकिर
जे दिन हमार कल्पना झूठ हो जाई
उहे दिन हमार प्राण उड़ जाई
तब तू सोचबू
कल्पना खाली कल्पना नईखे
कल्पना से जुडल बा ई जिनगी
अज़नबी तो जाने लें
कल्पना बिना बेकार बा
ई जिनगी
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अजय सिंह अजनवी
छपरा