★इश्क़ ना तेरा बहरा होता★
जानते हो फिर से मुझे,
बिस्तर ने अपनें बाहोपाश में
कुछ ऐसे जकड़ लिया है
जैसे कई जन्मों का बँधन
निभा रहा हो तुम्हारी 'मधु' से ।
सच बहुत दिनों से,
बिस्तर की सलवटें ही गिन रही मैं,
कितनी बार करवट बदली है मैंने
ये तो मेरा तकिया भी तुम्हें बता देगा
क्योंकि जितनी बार करवट बदलती हूँ ना !
उसे लगता है कहीं उसका
परित्याग तो नहीं कर रही मैं,
कहीं किसी की दुआएँ
काम तो नहीं आ गई मेरे
लेकिन उसे क्या पता कि,
मैं ना तो किसी की दुआओं में शामिल हूँ
और ना ही किसी की परवाह के काबिल
फिर कैसे संभव है उसके सानिध्य से
निकल पाना मेरा ।
शायद तुम कभी नहीं समझ पाओगे
क्योंकि तुमनें कभी 'प्रीति' को
अपनें हिस्से रखकर देखा ही नहीं ।
गर रखा होता तो,
इस बात से अनजान ना होते कि,
एहसासों के पाँव नहीं होते
फिर भी चले आतें हैं दिल तक,
जज्बातों का बवंडर लिए............
गर हाल मेरा जो पूछ ही लेते..
गम का नही यूँ पहरा होता..
मुझे एहसास के धागे बाँध जो लेते..
यूँ दर्द सीने ना ठहरा होता..
'प्रीत' के नग्में बुन जो लेंते..
ज़ख्म ना यूँ गहरा होता..
जज़्बात इस दिल के सुन जो लेते..
यूँ इश्क़ ना तेरा बहरा होता..
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प्रीति मधुलिका
पटना बिहार