"TET संवर्ग अलग करो" टी ई टी शिक्षकों का ट्विटर वार आज से
पटना बिहार : बिहार राज्य के सभी टी ई टी शिक्षकों का टी एस 4 के द्वारा आहूत आज 12 जून को ट्वीटर वॉर 11 बजे से प्रारम्भ होने को है। जैसा संघ के द्वारा बताया गया है कि बिहार सरकर हमेशा से ती ई टी शिक्षकों के साथ गलत पेश होते आयी है। टी ई टी शिक्षक जंहा टी ई टी जैसे परीक्षा पास कर के नौकरी में है वहीं इन्हें शिक्षा मित्रों के साथ जोड़ कर रखी है। इनका वेतनमान शिक्षक के वास्तविक वेतनमान के समान रहनी चाहिए वंही इन्हें शिक्षा मित्री के साथ नियोजित के पद पर रखी है। संघ के अनुसार इनका पात्रता परीक्षा के समय दिशा निर्देश नियुक्ति का था। इनका एक मात्र उद्देश्य बिहार सरकार से निवेदन है कि अन्य राज्यों की तरह इनका एक अलग संवर्ग बना कर इन्हें नियमित किया जाए तथा शिक्षक के मूल वेतनमान देना है।
टी एस 4 जो एक टी ई टी शिक्षकों का संघ है उनका कथन निम्नवत है:
#TET_संवर्ग_अलग_करो के साथ ट्विटर पर ट्रैंड कराने के प्रयास में सभी टीईटी शिक्षक साथियों की सहभागिता प्रार्थित है :
1) समान स्कूल प्रणाली व्यवस्था का विचार केंद्र सरकार ने त्याग दिया क्या? यदि नहीं तो फिर क्या बिहार माॅडल को केंद्र सरकार देश भर में लागू करना चाहेगी?
2)SLP 20/2018 के SC के न्याय निर्णय में टेट जैसी परीक्षा के आधार पर गुणवत्ताधारी शिक्षकों की पहचान कर उन्हें बेहतर वेतनमान देने के सुझाव पर दो साल बीत जाने के बाद भी बिहार सरकार कोई कदम न उठाकर यह साबित कर रही कि शिक्षा और शिक्षक उसके एजेंडे में शामिल नहीं हैं।
3)SLP 20/2018 के SC के न्याय निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने शिक्षकों का वेतन चपरासी से भी कम होने पर क्षोभ व्यक्त किया तथा ऐसी विसंगतियों को दूर करने का निर्देश दिया था पर दो साल बाद भी सरकार ने कोई कदम न उठाकर न्यायालय के आदेश का अवमानना किया है।
4)बिमारू राज्यों की श्रेणी वाले राज्यों ने भी टेट शिक्षकों को सहायक शिक्षक नियुक्त कर पे-बैंड 2का लाभ दिया जबकि लगातार 15%से अधिक स्थिर विकास दर वाले राज्य बिहार ने उन्हें नियोजित बनाकर पे बैंड 1का आधा-अधूरा लाभ दिया।यह संघीय भावना के विपरीत आचरण नहीं है।
5) केन्द्र सरकार गुणवतापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समस्त भारत में एक समान शिक्षा और शिक्षक व्यवस्था के संकल्प को कानूनी रूप देने पर विचार क्यों नहीं कर रही है?
6)भारत सरकार के राजपत्र के जरिए बिहार और बंगाल दोनों को अप्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति का निर्देश दिया गया था जिसका बंगाल ने अनुपालन किया और बिहार ने टेट पास शिक्षकों का नियोजन किया यह भारतीय विधान का अवमानना है। केंद्र सरकार चुप कैसे रह सकती है?
7)RTE_ACT 2010 के लागू होने के पश्चात् NCTE के दिशा-निर्देश के आलोक में बिहार सरकार ने टेट परीक्षा पास अभ्यर्थियों के लिए नियुक्ति का विज्ञापन निकालकर भी नियोजन किया जो बिहार की जनता और युवाओं के साथ विश्वासघात है।
8)श्रम कानून के तहत कुशल और अकुशल श्रमिकों के पारिश्रमिक में अंतर होता है पर बिहार में इसके विपरीत RTE तथा NCTE के समस्त मानकों को पूरा करने वाले टेट शिक्षकों का औसत वेतन करीब 22 हजार जबकि नन टेट शिक्षकों का औसत वेतन करीब 30 हजार है।वोट बैंक की राजनीति से गुणवतापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने में सरकार का यह दोहरा चरित्र बाधक है।
09)RTE ACT2010 की कंडिका 23 को और स्पष्ट कर प्रावधानित शर्त का अनुपालन करते हुए राज्य सरकार को शिक्षक भर्ती न करने की छूट क्यों दे रखी है केंद्र सरकार?
10) बिहार के सवा लाख टेट शिक्षकों को सहायक शिक्षक संवर्ग में समायोजित करने में क्या परेशानी हो सकती है?क्या राष्ट्र हित में वोट बैंक नीति से परे लोकतांत्रिक निर्णय क्यों नहीं लिए जा सकते?
11)1 जुलाई 2015 को आधा अधूरा पे बैंड 1 का लाभ देकर पांच साल बाद नियमावली प्रतिपादित करना तथा तत्संबंधी गठित कमिटी की एक बैठक तक न होना सरकार की घोर लापरवाही और स्वेच्छाचारिता को दर्शाता है?क्या ऐसी निष्क्रिय सरकार गुणवतापूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने का सत्य संकल्प ले सकती है?
12) प्रारम्भिक विद्यालय नियमावली 1991यथसंशोधित 1993 को जीवित रखते हुए सरकार ने तत्सम्बंधित सहायक शिक्षक के पद को मृत संवर्ग घोषित कर दिया है जबकि कल्याण विभाग द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों में उक्त नियमावली के आलोक में अद्यावधि नियुक्ति हो रही है। ऐसी त्रुटिपूर्ण और तुगलकी व्यवस्था से लोकतंत्र और शिक्षक दोनों कमजोर होंगे जो कदापि उचित नहीं है।
13)शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल होने के बावजूद भी केंद्र सरकार शिक्षकों की वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए समूचे देश के लिए समान कानून बनाने से परहेज कर रही है जबकि NEP2020 समान शिक्षा, समान शिक्षक, समान पाठ्यचर्या की वकालत करती है।
14)CWJC 2087/2020 में पटना उच्च न्यायालय ने 19 फरवरी को निर्गत न्याय निर्णय में बिहार सरकार को चार महीने के भीतर शिक्षक नियमावली बनाने का आदेश दिया है पर इतने समय गुजर जाने के बाद भी सरकार ने ने नियमावली निर्मात्री कमिटी तक गठित नहीं की है। सरकार न्यायालय की अवमानना कर क्या साबित करना चाहती है?
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