दीवारों के पार कहानी
----------------------------------
/// जगत दर्शन साहित्य
अनामिका की शादी को पाँच साल हो चुके थे। शुरू में उसे लगा कि हर पति-पत्नी में तकरार सामान्य है, लेकिन जल्द ही उसने देखा कि उसका पति राकेश छोटी-सी बात पर भी चीखता, घर की चीजें पटकता, और कभी-कभी हाथ भी उठा देता। यह निरंतर उत्पीड़न अनामिका का आत्मविश्वास तोड़ता रहा। वह भीतर से पूरी तरह टूट गई थी। रिश्ते सुधारने के उसके हर प्रयास ने इसे और जटिल और तनावपूर्ण बना दिया था।
एक दिन, खाली समय में अखबार पढ़ते हुए उसने एक भयानक खबर पढ़ी कि पति की सच्चाई सामने आने पर पति ने पत्नी को मार डाला। यह खबर पढ़ते ही अनामिका अंदर तक सिहर गई। उसे लगा, यह तो उसकी अपनी कहानी है। उसके मन में सवाल उठने लगे—"क्या राकेश की ज़िंदगी में कोई और औरत है? क्या यह नफ़रत उसी वजह से है?"
एक शाम, जब राकेश ने फिर बिना वजह चिल्लाया और उसे धक्का दिया, तो अनामिका की आँखें भर आईं। उस पल उसे अहसास हुआ कि यह सिर्फ़ गुस्सा नहीं, बल्कि उसे घर से बाहर करने की साज़िश है।
उस रात, वे जमकर लड़े। राकेश अपनी हैवानियत पर उतर आया। किसी तरह खुद को बचाकर अनामिका घर से भागी और अपनी माँ के घर चली आई। बेटी की हालत देख माता-पिता सदमे में थे। रिश्तेदारों ने अलग-अलग सलाहें दीं—पुलिस, कोर्ट, या सुलह। पर किसी ने यह नहीं समझा कि उसका डर कितना गहरा था।
बहुत थक हार कर, जब वह तलाक लेने का फ़ैसला कर रही थी, तभी राकेश अपने माता-पिता के साथ आया और गिड़गिड़ाते हुए माफ़ी माँगी। उसने कसमें खाईं और एक आख़िरी मौका माँगा। समाज के दबाव और अकेलेपन के डर से, अनामिका ने उसे माफ़ कर दिया।
राकेश सचमुच सुधर गया था। अब मारपीट या चिल्लाहट नहीं थी। अनामिका को लगा कि जीवन ने सच में नई करवट ली है। मगर यह तूफान से पहले की शांति थी।
राकेश अब अक्सर गुस्से वाली बातों पर चुपचाप घर से बाहर चला जाता और शांत व प्रसन्न होकर लौटता। अनामिका को लगा कि वह खुद पर काबू पाना सीख रहा है। लेकिन जल्द ही वह किसी–न–किसी बहाने एक या दो दिन के लिए घर से बाहर रहने लगा।
एक शाम, राकेश ने कहा कि वह दो दिन के लिए ऑफ़िस ट्रिप पर पूना जा रहा है। उसके जाने के बाद, अनामिका अपनी सास के साथ सब्जी मंडी जाती है ।तभी उसकी नज़र एक बिल्डिंग में जाते हुए राकेश और उनकी पड़ोसन पर पड़ी। पड़ोसन, जिसकी तारीफ़ राकेश अक्सर करता था। अनामिका का दिल बैठ गया, पर वह खुद को समझाती रही कि यह शक नहीं है।
रात को, सास-ससुर को खाना देकर जब वह किचन गार्डन में आई, तो उसे पड़ोसन के घर में राकेश दिखाई दिया। वह पड़ोसन से कह रहा था: "मैं उस बेवकूफ़ औरत को बोल आया हूँ कि मैं ऑफ़िस ट्रिप पर हूँ।" अगले ही पल, दोनों एक दूसरे में लिप्त हो गए।
अनामिका को अपनी आँखों देखी पर विश्वास नहीं हुआ। भावावेश में आकर वह तुरंत पड़ोसन के घर पहुँची और दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया।
सच्चाई सामने आते ही राकेश बौखला गया। शर्मिंदगी और क्रोध में उसने अनामिका को ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया। इसके बाद, राकेश और पड़ोसन दोनों उस पर टूट पड़े। उन्होंने अनामिका को तब तक मारा, जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ दिया।
राकेश घबराकर अनामिका के शव को अपने घर के बेडरूम में ले आया। माता-पिता ने समाज की इज़्ज़त बचाने के लिए इस घृणित कृत्य को छुपाने का फ़ैसला किया। उन्होंने कहानी गढ़ी कि रात में घर में चोर-लुटेरे घुसे थे और उन्होंने लुट–पाट मचाने से रोकती अनामिका को खूब बुरी तरह से पीटा। वही सास ससुर कैसे बच गए तो उन्होंने कहा कि बंदूक की नोक पर ये सब हो रहा था। ससुर ने मनगढ़ंत कहानी रचते हुए अपने शरीर पर कुछ चोट के निशान दिखा दिए जो कि हत्या वाली रात को झूठ मूट बनाई गई थी।
इधर अनामिका के माता-पिता के दबाव पर पुलिस ने जाँच शुरू की। उन्हें पता था कि लूटपाट की कोई घटना नहीं हुई थी। पुलिस का दबाव बढ़ा, पर राकेश अपने झूठ पर अड़ा रहा।
यहीं पर, दीवारों के पार, एक नई गूँज शुरू हुई। अक्सर राकेश को अब घर में अनामिका की उपस्थिति महसूस होने लगी। किचन गार्डन से लेकर बेडरूम तक, उसे हर जगह अनामिका का साया दिखता। उसे लगता, जैसे कोई उसे घूर रहा है। उसका झूठ, उसके ही मन में दीवारों की गूँज बनकर लौट रहा था।
एक रात, राकेश को नींद में ही भयानक सदमा लगा। उसे लगा कि अनामिका की आत्मा उसके सामने खड़ी है, और उसकी आँखें आरोप नहीं, बल्कि एक शांत मुस्कान लिए हुए हैं।
आत्मा ने फुसफुसाते हुए कहा: "तुमने सोचा कि मुझे मार देने से यह सच 'दीवारों के पार' नहीं जाएगा? हर दीवार की अपनी गूँज होती है, राकेश। अब तुम्हारा झूठ तुम्हें सोने नहीं देगा।"
राकेश दहशत में उठ बैठा। वह पागलों की तरह चीखने लगा, और बार-बार चिल्लाया: "मैंने नहीं मारा! मैंने नहीं मारा! मुझे माफ़ कर दो अनामिका!"
अगले दिन, जब पुलिस दोबारा पूछताछ के लिए आई, तो उन्होंने राकेश को एक मानसिक रोगी की तरह पाया। वह लगातार अनामिका का नाम ले रहा था और अपना अपराध स्वीकार कर रहा था। उसकी यह मानसिक हार पुलिस के लिए सबसे बड़ा सबूत बन गई। राकेश को गिरफ्तार कर लिया गया।
जैसे ही राकेश और पड़ोसन को पुलिस की गाड़ी में बिठाकर ले जाया गया, अनामिका की आत्मा उस घर की दहलीज पर खड़ी थी। उसके माता-पिता यह सब दृश्य को चुपचाप, सहमे हुए देख रहे थे। पुलिस ने उन्हें भी झूठी गवाही और पुलिस को गुमराह करने के लिए गिरफ्तार कर लिया। वही पड़ोसन जिसने अपना मुंह पल्लू से छुपा रखा था ताकि दुनिया उसे न देख सके अब वह अनामिका की आत्मा के सामने बे–आबरू हो चुकी थी।
अनामिका की आत्मा मुस्कुराई। उसने समाज या किसी व्यक्ति को एक शब्द भी नहीं कहा। उसने पहले किचन गार्डन की ओर देखा—वह जगह जहाँ उसने दूसरी बार विश्वास किया था। फिर उसने पड़ोसन के घर की ओर देखा—वह जगह जहाँ वासना छिपी थी। अपनी अधूरी लड़ाई का न्याय होते ही, अनामिका की आत्मा उस घर की दीवारों को पार करके मुक्ति पा गई।

