गांवों में अब भरोसेमंद इलाज की गारंटी — सारण के दो आयुष्मान आरोग्य मंदिरों को मिला राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणन
सारण (बिहार): ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त बनाने की दिशा में सारण जिले ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। जिले के दो आयुष्मान आरोग्य मंदिर — सोनपुर प्रखंड के गोविन्दचक और नगरा प्रखंड के गोपालपुर नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड (NQAS) के तहत राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणन प्राप्त कर चुके हैं।
यह सफलता स्वास्थ्य विभाग के समर्पण, टीमवर्क और बेहतर प्रबंधन का परिणाम है। गोविन्दचक केंद्र को 89.57 प्रतिशत और गोपालपुर केंद्र को 84.47 प्रतिशत अंक मिले हैं, जिससे ये दोनों अब देश के चुनिंदा उच्च गुणवत्ता वाले स्वास्थ्य केंद्रों में शामिल हो गए हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य की दिशा में बड़ा कदम
सिविल सर्जन डॉ. सागर दुलाल सिन्हा ने कहा कि किसी केंद्र का प्रमाणीकरण सामूहिक जिम्मेदारी का परिणाम होता है।
> “हर स्तर के स्वास्थ्यकर्मी का योगदान जरूरी होता है — प्रशिक्षण, संसाधन, प्रशासनिक दक्षता और समर्पण से ही यह संभव हुआ है। सरकार की प्राथमिकता है कि लोग अपने गांव में ही भरोसेमंद इलाज पा सकें।”
एनक्यूएएस: भरोसे और गुणवत्ता का प्रतीक
जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीसी रमेशचंद्र कुमार ने बताया कि NQAS का उद्देश्य सिर्फ सर्टिफिकेट देना नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में जनता का भरोसा बढ़ाना है।
> “यह प्रणाली रोगी अधिकार, संक्रमण नियंत्रण, गुणवत्ता प्रबंधन और क्लिनिकल सेवा मानकों पर आधारित है — जिससे मरीजों को सुरक्षित और संतोषजनक उपचार मिलता है।”
तीन वर्षों तक मिलेगा ₹1.26 लाख प्रति वर्ष
जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम अरविंद कुमार ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से प्रमाणित केंद्रों को तीन वर्षों तक प्रति वर्ष ₹1.26 लाख की सहायता राशि दी जाएगी, ताकि सेवाओं का उन्नयन, उपकरण उपलब्धता और आधारभूत सुधार किया जा सके।
इन मानकों पर हुआ मूल्यांकन:
सेवाओं की निरंतरता
मरीजों के अधिकार और संतुष्टि
संसाधन व स्टाफ की उपलब्धता
क्लिनिकल सेवाएँ
संक्रमण नियंत्रण
गुणवत्ता प्रबंधन और परिणाम
गांवों में स्वास्थ्य की नई कहानी
गोपालपुर और गोविन्दचक जैसे सुदूर इलाकों में अब मरीजों को इलाज के लिए शहर नहीं जाना पड़ेगा।
यहाँ अब डॉक्टर, नर्स, दवाइयाँ, टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की जांच, ब्लड प्रेशर और शुगर टेस्ट, टेलीमेडिसिन जैसी सेवाएँ आसानी से उपलब्ध हैं।
इन केंद्रों की सफलता से यह साबित होता है कि यदि इच्छाशक्ति, प्रबंधन और सामुदायिक सहभागिता हो, तो गांवों में भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था स्थापित की जा सकती है।
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