'मेडुसा': एक मिथकीय पुनराख्यान
प्रोफेसर नंदिनी साहू और उनकी पुस्तक मेडुसाः कविता-संग्रह
प्रोफेसर नंदिनी साहू एक लब्ध प्रतिष्ठित लोकगीतकार एवं अंग्रेजी कवयित्री है। संप्रति वे हिंदी विश्वविद्यालय हावड़ा (पश्चिम बंगाल) की कुलपति है।
प्रोफेसर साहू द्वारा रचित 'मेडुसा' एक सरल फिर भी जटिल और आकर्षक काव्य संग्रह है जो समकालीन भारतीय अंग्रेजी काव्यशास्त्र के भौतिक विज्ञान में मिथक और लोक कथाओं को कुशलता से अनुस्यूत करता है। प्राच्य और पाश्चात्य शास्त्रीय साहित्य के संगम पर स्थित यह कविता 21वीं सदी के ज्वलंत लैंगिक विमर्शों से भी गहराई से जुड़ती है। 'मेडुसा' के मिथकीय चरित्र के माध्यम से कवयित्री साहू स्त्री अवतार और परायापन की राजनीति पर प्रश्न उपस्थित करती हुई पश्चिम शास्त्रीय परंपराओं और भारतीय मिथकीय कल्पनाओं- संदर्भों दोनों में अंतर्निहित पारंपरिक आख्यानों को पुनः प्राप्त और विकृत करती है। उनकी पर्यावरण-नारीवादी, संवेदनशीलता प्रकृति और महिलाओं के और शरीर के आग्रह के साथ जुड़ाव को उजागर करने के साथ-साथ पूंजीवादी एवं औपनिवेशिक शोषण द्वारा परिस्थिति की और स्त्रीत्व-दोनों पर थोपी गई कठोरता को उजागर करती है। साथ ही, साहू का कवि कर्म उत्तर नारीवाद और नवउदारवाद को द्वदात्मकता को उजागर करता हुआ यह दिखाता है कि कैसे समकालीन नारीवादी व्यक्तिपरकाताएं प्रायः बाजार की रसद द्वारा सहयोजित हो जाती है जिससे बहनाये और स्वायत्तता को मुक्ति दायिनी क्षमता जटिल हो जाती है।
वैश्विक पौराणिक कथाओं और लोक परंपराओं के साथ इस काव्य संग्रह का अंतर पाठ्य संवाद शरीर को राजनीति को पूछताछ को समृद्ध करने के साथ-साथ अंतर संबंध और संकरता को समक्ष लाकर अनिवार्य द्विविभाजन को चुनौती देता है। फिर भी कई बार मेडुसा मिथकीय अमूर्तता के विरोधाभास का जोखिम उठाता है, जहां समृद्ध स्तरित प्रतीकवाद हाशिए पर पड़े लोगों की तात्कालिक यथार्थ को आवृत कर लेता है, पाठकों को एक वैश्वीकृत किंतु और समान रूप से आधुनिक संसार में सार्वभौमिक मिथकों और नारीवादी अनुभव के मध्य तनाव का गंभीरता से विचार करने के लिए आमंत्रित करता है।
अतिथि प्राध्यापिका (हिंदी एवं अनुवाद विभाग)
हिंदी विश्वविद्यालय, हावड़ा
(पश्चिम बंगाल) Mobile no.-9886638102


