छंद: हिंदी साहित्य का श्रृंगार
छंद-बद्ध कविता सिर्फ़ कविता नहीं, बल्कि काव्य साधना है, साहित्य का श्रृंगार है। यह हमारे काव्य की आत्मा है, हमारे पूर्वजों की धरोहर है। यदि हम समय दें, अभ्यास करें तो छंद न केवल कविता को, बल्कि जीवन को भी लय और अनुशासन प्रदान करते हैं। यह लेख समर्पित है उन महान रचनाकारों को जिन्होनें हिन्दी के पारंपरिक छंदों में लिखने का मार्ग प्रशस्त किया। उन लेखकों व पाठकों को जिन्हें छंद में रची गयी कविताओं में पढ़ने लिखने में आनंद मिलता है और जो हिंदी को प्रतिक्षण गौरवान्वित करने की साधना में लीन रहते हैं।
आधुनिक डिजिटल -युग में अधिकांश लोग शीघ्र सफलता, प्रसिद्धि और आर्थिक लाभ के लिए शॉर्टकट की तलाश करते हैं। दुःखद है कि पारंपरिक छंदों की बजाय विदेशी छंद शैलियाँ जैसे हाइकू या सॉनेट शौक से अपनाई जाती हैं और सोशल मीडिया पर कुछ भी परोस दिया जाता है । वास्तव में यह गौरव की बात है कि हमारी हिन्दी परंपरा में छंदों की जड़ें गहरी और अनुपम हैं। छंद में रचना करना केवल गणना का खेल नहीं है। इसके लिए धैर्य, शब्द सम्पदा, कल्पना शक्ति और लगातार अभ्यास चाहिए। छंद में रचना करना कठिन ज़रूर है, परन्तु उसी कठिनाई में उसका सौंदर्य छिपा है।
हिन्दी में छंद मुख्यतः तीन प्रकार के माने गए हैं-वर्णिक, मात्रिक छंद तथा वर्ण-वृत्त छंद।
1. वर्णिक छंद – इन छंदों में केवल वर्णों (अक्षरों) की संख्या गिनी जाती है, मात्राओं का विशेष महत्व नहीं होता जैसे, कवित्त, मनहरण या घनाक्षरी। पहली पंक्ति में 16 वर्ण, दूसरी पंक्ति में 15 वर्ण और इस तरह कुल चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण तुकांत होता है। वर्णों की गणना करते समय आधे वर्णो को नहीं गिना जाता। प्रत्येक पंक्ति में आठवें वर्ण के बाद एक विराम अपेक्षित है परंतु अनिवार्य नहीं ऐसा विधान है। विराम को छंद-शास्त्र में तकनीकी रूप से ‘यति’ कहा जाता हैं।
वर्णिक कवित्त छंद गणना-
1)भर दीजिये दिलों को, नव प्रेरणा से फिर, (16) 2)शीतल बरसती फुहार बन जाइए।। (15)
3)विधर्मियों के ताप का नाश करने के लिए, (16) 4)आज फिर तीर-तलवार बन जाइए ।। (15)
2. मात्रिक छंद :- इनमें पंक्तियों की मात्राएँ गिनी जाती हैं। जैसे दोहा- जिसमें 13 व 11 मात्राओं का क्रम होता है। कुल चार चरण व प्रत्येक चरण तुकांत होता है। ह्रस्व स्वर (लघु)1, दीर्घ स्वर (गुरु)2 की गणना से किया जाता है। उदाहरण दोहा:
1)तन को धन का मोह है,(13) 2) मन को तृष्णा पाश।(11)
3)भक्ति-दीप जो जल उठे,(13) 4) कट जाती सब त्रास।।(11)
चौपाई : जो 16 मात्रिक व चार पंक्तियों का छंद होता है ।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। (16) जय कपीस तिंहु लोक उजागर।।(16)
मन मंदिर में दीप जलाओ,(16) राम-नाम की गँगा बहाओ।(16)
3. वर्ण-वृत्त छंद : - इनमें छंद का आधार गण होते हैं, लघु- गुरु की विशेष संरचना होती है ।सवैया इसका प्रमुख उदाहरण है। भक्ति और रीति काल में सवैये, कवित्त, चौपाइयाँ जैसी रचनाएँ साहित्य का गहना थीं। भारतेन्दु और ब्रज-अवधी की काव्य-धारा ने भी इन छंदों को नया जीवन दिया। परन्तु आज खड़ी बोली में यह लगभग लुप्त हो रही है।
इन्हें याद रखने का सूत्र है -“यमाताराजभानसलगा”। भुजंग सवैया में आठ यगण। यगण: 1 लघु, 2 गुरु, 2 गुरु। - ऐसे ही दुर्मिल सवैया में आठ सगण तथा मंदार माला सवैया में सात तगण और एक गुरु का नियम है। “यदि आज मिले न हमें प्रिय तो कल देह में श्वास रहे न रहे ।” आठ सगण (112) के साथ यह दुर्मिल सवैया है ।
हमें अपनी जड़ों से, स्व संस्कृति से जुड़ना होगा न केवल छंद परंपरा को पुनः अपनाना होगा बल्कि हमें विदेशी शैलियों पर मुग्ध होने की चकाचौंध को भी रोकना होगा, ताकि हम यह धरोहर आगे सौंपने का दायित्व भलि भांति निभा सकें। इसके लिए साधक को चाहिए केवल स्वार्थ-रहित श्रम, धैर्यपूर्वक साहित्य-साधना और अपनी विरासत पर गर्व।
“छँद में काव्य की सुंदरता, पढ़ लिख करिये विस्तार।
शब्द शिल्प बन श्रम निखरता, बहती निर्मल रस धार।।”
✍️ डाॅ.कंचन मखीजा, रोहतक, हरियाणा