अपराध और समाज
रंगदारी: युवाओं के बीच धंधा या मजबूरी
बिहार के लखीसराय जिले में बड़हिया और इसके आसपास के गांवों में रहने वाले गरीब परिवारों के युवाओं के मन में आज भी रंगदारी के धंधे के प्रति काफी आकर्षण है!
लखीसराय जिले के बड़हिया के बाजार में जो व्यापारी और कारोबारी हैं अब इनमें ज्यादातर साधारण हैसियत के लोग शामिल हैं और अपने परिश्रम की गाढ़ी कमाई से रंगदारों को पैसा देना इनकी कमाई से बाहर की बात मानी जाती है लेकिन रंगदार आखिर जबरन पैसे की वसूली को भी अपना धंधा समझते हैं और रंगदारी की राशि के बदले वे व्यापारियों को अन्य रंगदारों के गिरोह से बचाव का आश्वासन देते हैं। बड़हिया में रंगदारी अंग्रेजों के समय से ही हो रही है।
रंगदारी के चक्कर में बड़हिया में काफी हत्याएं पहले होती थीं। लालू प्रसाद के जंगल राज में बड़हिया अपराध नगरी में तब्दील हो गया यहां इस समय बाजार उजड़ गया था और कोई यहां सामान वगैरह खरीदना भी पसंद नहीं करता था क्योंकि रंगदारों के जासूस खरीदारी के लिए बाजार आने वाले पैसेवाले लोगों पर भी नजर रखा करते थे और रोज नये - नये लोगों से रंगदारी वसूली की योजना रंगदार बनाते रहते थे। अपने घर पर रंगदार सब लोगों के हर तरह के मामलों की सुनवाई भी किया करते थे । आज भी अनगिनत रंगदारों का नाम बड़हिया के लोगों को याद है और इनमें ज्यादातर लोग मूर्ख चपाट और बेहद गरीब परिवारों से आने वाले लोग शामिल थे। बड़हिया में रंगदार सचमुच रंगदारों के हाथों ही मारे जाते थे। बेहद निर्मम तौर तरीकों से रंगदारों ने एक दूसरे के गिरोहों को खत्म करने की लड़ाई बड़हिया में लड़ी और यह कहा जा सकता है कि रंगदारों ने बाजार में पैसों की वसूली पर एकाधिकार कायम करने के लिए अपनी ही जाति बिरादरी में खून की होली खेली और अपनी मां बहनों के जीवन संसार को सूना कर दिया। ऱंगदारी में ज्यादातर अपराधी बर्बाद हो गये और इनमें से कुछ लोगों ने खूब पैसा रंगदारी के धंधे में बनाया और रंगदारी के पेशे के प्रति इसलिए आज भी बड़हिया में एक जाति विशेष के युवाओं में काफी आकर्षण है। इन युवाओं की अपनी भाषा है और इन लोगों का अपना जीवन धर्म है।
वे अकेले रहते हैं और उनके अपने यार दोस्त हैं। रंगदार पैसों के भूखे होते हैं और उन्होंने वारदात को अंजाम देने के बाद हथियार उठाने निर्दोष लोगों का खून बहाने के बदले रुपए पैसों के रूप में अपना सेवा शुल्क मांगने वाले अपने शूटरों को भी मौत के घाट उतार दिया। रंगदारों की इज्जत प्रतिष्ठा के सामने आज भी बड़हिया में किसी की कोई इज्जत नहीं है।
बड़हिया में पिछड़ी जातियों के कारोबारियों से रंगदारी वसूलने का चलन काफी पुराना है और इसीलिए यहां से मारवाड़ियों ने कारोबार समेट लिया। ब्राह्मणों से भी रंगदारी वसूली की चेष्टा की जाती रही है। ऐसा माना जाता है कि बड़हिया में इससे अपने बचाव में ब्राह्मणों ने हथियार उठाया था और फिर अपराध के दल-दल में फंसकर इस जाति के काफी लोग जेल गये थे और हत्या के शिकार होने के अलावा उनकी इज्जत प्रतिष्ठा भी खत्म हो गयी थी। यहां रंगदारी वसूली के काम में शामिल लोगों के गिरोह बनते रहते हैं और पहले बड़हिया में एक जाति विशेष के लोग रंगदार के रूप में यहां आपस में भयावह मार-काट किया करते थे। बड़हिया गांव श्मशान बनता जा रहा था और फिर यहां नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व काल में यह सब नियंत्रित भी होता दिखाई दे रहा था।