श्रीरामचरितमानस में प्रेम और करुणा पर राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी सम्पन्न
नई दिल्ली: संवाददाता प्रेरणा बुड़ाकोटी: माँ सरस्वती राष्ट्रीय काव्य मंच भारत द्वारा रविवार को “श्रीरामचरितमानस में प्रेम और करुणा” विषय पर अद्भुत काव्य एवं विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस ऑनलाइन/राष्ट्रीय मंचीय कार्यक्रम का संचालन मंच के संस्थापक महेश प्रसाद शर्मा तथा आदरणीया सुनंदा गावंडे (बुरहानपुर, मध्यप्रदेश) ने संयुक्त रूप से किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता मीरा सक्सेना माध्वी (नई दिल्ली) ने की। मुख्य अतिथि के रूप में श्री भारत भूषण वर्मा (असंध, करनाल, हरियाणा) तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ऋषिका वर्मा (गढ़वाल, उत्तराखंड) मौजूद रहीं।
इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक व सह-संस्थापक डॉ. रतिराम गढ़ेवाल (रायपुर, छत्तीसगढ़), विशेष मार्गदर्शक महेन्द्र माणिक (कार्यवाहक अध्यक्ष, संस्था एक प्रयास भारत), कार्यक्रम समन्वयक भावना गुप्ता (पुणे, महाराष्ट्र) तथा कार्यक्रम संरक्षिका डॉ. निर्मला राजपूत (पुणे, महाराष्ट्र) ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
मंच पर डॉ. प्रेरणा बुड़ाकोटी (दिल्ली) मीडिया प्रभारी के रूप में उपस्थित रहीं। साथ ही श्री पुहुप राम यदु (भाटापारा, छत्तीसगढ़), डॉ. ब्रजेंद्र नारायण द्विवेदी शैलेश (वाराणसी, उत्तर प्रदेश), डॉ. ज्योति कृष्ण मिश्रा (पुणे, महाराष्ट्र), डॉ. कृष्णा जोशी (इंदौर, मध्यप्रदेश), डॉ. कमला माहेश्वरी (बदायूं, उत्तर प्रदेश), डॉ. प्रमोद आदित्य (जांजगीर-चांपा, छत्तीसगढ़), डॉ. निराला पाठक (रांची, झारखंड), डॉ. अर्चना पाण्डेय (भिलाई दुर्ग, छत्तीसगढ़) तथा महेश प्रसाद शर्मा (बरेली, मध्यप्रदेश) ने अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुतियों से कार्यक्रम को यादगार बना दिया।
विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन-दर्शन, आदर्श और मानवीय मूल्यों का सागर है। इसमें प्रेम और करुणा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, जो जीवन को मधुरता, सद्भाव और दिव्यता से भरते हैं। भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जैसे पात्रों के माध्यम से इन गुणों का अनुपम चित्रण मिलता है।
अंत में संस्थापक महेश प्रसाद शर्मा ने सभी प्रतिभागियों और श्रोताओं का आभार प्रकट करते हुए कहा कि जो व्यक्ति अपने जीवन में प्रेम और करुणा को धारण कर लेता है, उसका जीवन सफल और समाज के लिए प्रेरणादायी बन जाता है। इसी संदेश के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।