हिंदी महिला समिति की परिचर्चा में गूंजे विचार — "हिंदी और नारी"
नागपुर (बिहार): हिंदी महिला समिति द्वारा शहर में आयोजित परिचर्चा "हिंदी और नारी" विषय पर साहित्यकार महिलाओं ने अपने विचार साझा किए। परिचर्चा में वक्ताओं ने हिंदी और नारी के बीच गहरे संबंध को रेखांकित करते हुए समाज, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला।
उत्तराखंड से आईं गार्गी जोशी ने कहा कि हिंदी और नारी दोनों की स्थिति समान है, दोनों ही अपने घर और देश में उपेक्षा का शिकार होती हैं। निशा चतुर्वेदी (हैदराबाद) ने कहा कि नारी किसी से कम नहीं है और यही उसकी असली परिभाषा है। जयपुर से आईं विमलेश चतुर्वेदी ने नारी को रचनाकर्ता और धुरी बताते हुए कहा कि जैसे हिंदी ने संस्कृति को समृद्ध किया है, वैसे ही नारी ने इतिहास को बदलने में योगदान दिया है।
भगवती पंत ने कहा कि नारी संतान को जन्म देती है, वैसे ही हिंदी नई भाषाओं को जन्म देती है और मातृत्व का सुख भोगती है। अपराजिता राजौरिया ने नारी को सृजनमयी और हिंदी को समाज को परिपक्व बनाने वाली बताया। कविता परिहार ने कहा कि नारी के नारीत्व से ही धरती स्वर्ग बनती है और हिंदी लोगों के कंठ से निकली आवाज है।
रश्मि मिश्रा ने कहा कि नारी और भाषा दोनों का महत्व समय के साथ बदलता रहा है, जबकि रति चौबे ने अपनी कविता में हिंदी और नारी को उपेक्षित बताते हुए दोनों के उज्ज्वल भविष्य की बात की। पूनम मिश्रा ने हिंदी को नारी की सौम्यता का प्रतीक बताया और कहा कि नारी के बिना घर अधूरा है, वैसे ही शिक्षा हिंदी के बिना अधूरी है। निवेदिता पाटनी ने हिंदी को मातृतुल्य बताया, जो अपनी छांव में अपनापन लुटाती है।
रेखा तिवारी ने हिंदी को चिंतन की अविरल धारा बताया, वहीं गीतू शर्मा ने हिंदी और नारी दोनों को समाज की पूरक बताया और उपेक्षा पर चिंता जताई।
कार्यक्रम के अंत में संस्था की अध्यक्षा रति चौबे ने सभी वक्ताओं के विचारों की सराहना करते हुए कहा कि हिंदी शाश्वत है और दिग्दिगंत तक नक्षत्रों की तरह चमकती रहेगी।

