जीवन में इच्छा, ध्यान एवं कर्म शक्ति का महत्व!
हमारे शास्त्रों में जीवन के संयोजन, संतुलन एवं प्रत्येक ऊर्जा का स्रोत मनुष्य के भीतर माना गया है। विशेष रूप से इच्छा शक्ति (Will Power), ध्यान शक्ति (Power of Concentration), और कर्म शक्ति (Power of Action)
सांसारिक, भौतिक या आध्यात्मिक लक्ष्य कोई भी हो ये तीनों शक्तियाँ ही व्यक्ति को वहां तक पहुँचाने में मुख्य भूमिका निभाती हैं।
1. इच्छा शक्ति (Will Power):
इच्छा शक्ति ही किसी भी कार्य या साधना का प्रारंभिक बिंदु है। यह हमारी चेतना, अवचेतना के पटल से उठने वाली वह प्रेरक शक्ति है, जो हमें एक निश्चित दिशा में लेकर जाती है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति भी ईश्वर की इच्छा का ही परिणाम है।
2. ध्यान शक्ति (Power of Concentration):
ध्यान शक्ति वह सेतु है जो इच्छा और कर्म के बीच संतुलन बनाती है। बिना एकाग्रता के इच्छा बिखर जाती है और कर्म दिशाहीन हो जाता है।यह इच्छा को रूप देने का सार्थक माध्यम है क्यों कि जब मनुष्य ध्यान द्वारा अपने चित्त को स्थिर कर लेता है, तब उसकी इच्छाएं भी शुद्ध और सशक्त हो जाती हैं। विवेकानंद जी ने इस संदर्भ में कहा भी है: "एकाग्रता की शक्ति ही ज्ञान के भंडार की कुंजी है।"
अन्य भारतीय ध्यान परंपरानुसार राज योग, अष्टांग योग में ध्यान को अपनी चेतन,अवचेतन शक्तियां अर्जित करने का एक मुख्य माध्यम माना गया है। कहीं कहीं ध्यान को वर्तमान में रह कर कार्य को जागरूक्ता से करने वाली क्रियाशक्ति से भी दर्शाया गया है।
3. कर्म शक्ति (Power of Action):
यह वह अवस्था है जब विचार और एकाग्रता एक स्पष्ट मूर्त रूप अर्थात् कर्म के रुप में प्रकट होते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मयोग को सबसे श्रेष्ठ कहा गया है:
"नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।"
अर्थात् - "तू नियत कर्म कर, क्योंकि कर्म अकर्म से श्रेष्ठ है। इच्छा केवल मन में रखने से कुछ नहीं होता, उसे कर्म में बदलना आवश्यक है।”
4. इच्छा, ध्यान, कर्म की शक्तियों का संयोजन:
यदि मनुष्य इच्छाओं का परिष्कार करते हुए चित्त को नियंत्रण (ध्यान) में लेकर अपना कर्म निर्लिप्त निरासक्त भाव से कर पाएं तो उसकी शक्ति आत्मा, प्रेम, करुणा, विवेक और भक्ति के रूप में प्रकट होती है और वह ईश्वरीय शक्ति का एक अंग बन जाता है। जैसे ध्रुव ने बालक होते हुए अपनी मां की इच्छा को साधना का रूप दिया, ध्यान में लीन हुए, और निष्कलंक कर्म करते हुए भगवान विष्णु का साक्षात्कार किया। मीरा का कर्म श्रीकृष्ण की भक्ति के रूप में प्रकट हुआ।
डाॅ.कंचन मखीजा, रोहतक, हरियाणा