दम तोड़ रही दाहा नदी : अतिक्रमण, गाद और लापरवाही से जर्जर हुए तटबंध, गांवों में तबाही का खतरा!
सारण प्रमंडल की जीवनरेखा मानी जाने वाली दाहा नदी आज अपनी अंतिम साँसें गिन रही है। कभी गोपालगंज के सासामुसा से निकलकर माँझी के फुलवरिया तक 100 किमी लंबी धार बहाने वाली यह नदी अब अतिक्रमण, गाद और प्रशासनिक उदासीनता के कारण बदहाली के कगार पर है। गर्मी के दिनों में यह नदी कई जगहों पर नाले में तब्दील हो जाती है, तो बरसात में टूटे तटबंधों के कारण भीषण तबाही मचाती है।
सारण (बिहार) संवाददाता मनोज कुमार सिंह: गोपालगंज, सिवान और सारण जिलों की सीमाओं से होकर बहने वाली दाहा नदी की हालत दिनों-दिन बदतर होती जा रही है। विभिन्न स्थानों पर इसकी चौड़ाई 50 से 150 मीटर तक फैली है, लेकिन आज यह गाद से भरी, जलकुंभी से पट चुकी और अतिक्रमण से सिकुड़ी नदी बन गई है। माँझी क्षेत्र के फुलवरिया, मटियार, मुबारकपुर, चेंफुल और महम्मदपुर पंचायतों में इसके तटबंध कभी भी टूट सकते हैं।
नदी के किनारों के तटबंध वर्षों से जर्जर हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार बरसात के दिनों में तटबंध टूटने से हर साल भारी तबाही होती है। मटियार पंचायत के पूर्व मुखिया जय प्रकाश महतो ने बताया कि गर्मी में सूखती नदी में मृत पशुओं के शव और गांव की नालियों का गंदा पानी बहाया जाता है। कई स्थानों पर शवों का दाह संस्कार भी नदी के भीतर ही किया जाता है।
नदी बनी गंदगी और अवैध कब्जे का अड्डा
मुबारकपुर पंचायत के पूर्व मुखिया राहुल प्रकाश सिंह ने बताया कि नदी की भूमि पर ग्रामीणों द्वारा अवैध निर्माण किए जा चुके हैं। तटबंधों के अंदर कई जगह पक्के मकान बना दिए गए हैं। पेड़-पौधों के अभाव और तटबंधों पर सड़क नहीं होने से मिट्टी का क्षरण हो रहा है, जिससे नदी की गहराई और प्रवाह दोनों में कमी आई है।
उद्वह योजना ठप, किसान बेहाल
वर्ष 2011 में लगभग 18 करोड़ रुपये की लागत से बनी उद्वह जलस्रोत योजना, जो किसानों की सिंचाई व्यवस्था को दाहा नदी से जोड़ने के लिए बनी थी, आज डेढ़ दशक से ठप पड़ी है। माँझी के पूर्व उप प्रमुख रामकृष्ण सिंह ने बताया कि गाद और जलकुंभी के कारण यह योजना पूरी तरह निष्क्रिय हो चुकी है।
सामाजिक तनाव भी बढ़ा
चेंफुल पंचायत के सामाजिक कार्यकर्ता अनूप कुमार सिंह ने कहा कि सीमावर्ती गांवों में नदी की परती जमीन पर कब्जा कर फसल उगाने को लेकर तनाव की स्थिति बनी रहती है। मटियार और चेंफुल पंचायत के मुखिया प्रतिनिधियों ने बताया कि सरकार ने अब तक नदी की भूमि की स्पष्ट नापी नहीं करवाई है, जिससे लोग तटबंध को ही सरहद मान निर्माण कार्य कर लेते हैं।
सदन में उठा था मुद्दा, फिर हुआ तख्ता पलट
माँझी प्रखंड प्रमुख प्रतिनिधि राजेश कुमार ने बताया कि राजद-जदयू सरकार के समय तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने सदन में दाहा नदी के हालात का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। सरकार ने नदी को अतिक्रमण मुक्त करने, गाद की सफाई, जलकुंभी हटाने और तटबंधों को मजबूत करने की योजना बनाई थी, लेकिन सरकार बदलते ही यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई।
संभावनाएं अब भी जिंदा
स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यदि सरकार दाहा नदी की अविरलता को बहाल करने में गंभीरता दिखाए तो यह नदी एक बार फिर क्षेत्र की लाखों एकड़ भूमि की सिंचाई का साधन बन सकती है और मछली उत्पादन में सारण प्रमंडल देश में शीर्ष स्थान पर पहुंच सकता है।