कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम:
कालाजार नियंत्रण को लेकर आरएमआरआईएमएस के सहयोग से समीक्षा बैठक आयोजित!
सिवान सहित राज्य से कालाजार जैसी बीमारी को जड़ से मिटाने में स्वास्थ्य विभाग सहित कई अन्य सहयोगी संस्थाओं ने निभाई अहम भूमिका: निदेशक
सामुदायिक स्तर पर जन जागरूकता अभियान में मीडिया एक सशक्त माध्यम: सिविल सर्जन
रेत मक्खी बालू की रोकथाम को लेकर हम सभी को अपनी जिम्मेदारियों का करना होगा निर्वहन: डॉ ओपी लाल
सारण (बिहार): कालाजार उन्मूलन अभियान के माध्यम से कालाजार प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले कमजोर समूहों और जोखिम वाली आबादी की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है। क्योंकि अब यह सार्वजनिक रूप से स्वास्थ्य समस्या नहीं रह गई है। उक्त बातें राजेंद्र मेडिकल पटना स्थित राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आरएमआरआईएमएस) के निदेशक डॉ कृष्णा पाण्डेय ने शहर के निजी होटल में कालाजार नियंत्रण को लेकर जिला स्तरीय समीक्षा बैठक के दौरान कही। उन्होंने यह भी कहा कि परजीवी के कारण होने वाला कालाजार, उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी) में से एक है, जिसकी मृत्यु दर बहुत अधिक है। हालांकि अब इसे वैश्विक स्तर पर काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है, क्योंकि सिवान सहित राज्य से कालाजार जैसी बीमारी को जड़ से मिटाने में स्वास्थ्य विभाग सहित कई अन्य सहयोगी संस्थाओं ने अहम भूमिका निभाई है। डब्ल्यूएचओ द्वारा परिभाषित बीमारियों का एक समूह है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आबादी के वंचित वर्गों को प्रभावित करता है। इस बीमारी के लक्षणों में बुखार, अत्यधिक थकान, वजन कम होना, तिल्ली और यकृत का बढ़ना शामिल है। अगर इसका इलाज समय पर नहीं किया गया तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। इस मौके पर भगवानपुर हाट प्रखंड के मघरी गांव निवासी कालाजार (पीकेडीएल) बीमारी से ऊबर चुके मरीज वीरेंद्र राय ने बीमारी, उपचार और सरकार की मिलने वाली सहायता राशि को लेकर अपना अनुभव साझा किया।
सिविल सर्जन डॉ श्रीनिवास प्रसाद ने कहा कि राज्य ही नहीं बल्कि देश स्तर की प्रसिद्ध स्वास्थ्य संस्थान आरएमआरआईएमएस के निदेशक डॉ कृष्णा पाण्डेय के अलावा डब्ल्यूएचओ और पीरामल स्वास्थ्य सहित कई अन्य सहयोगी संस्थाओं के द्वारा सिवान सहित बिहार से भी कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत जिलें के विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों के पदाधिकारी और कर्मियों ने कालाजार को शून्य पर लाकर रखने के उद्देश्य से हर संभव प्रयास किया है। हालांकि इसके लिए कालाजार के मामलों की संख्या, प्रभावित क्षेत्रों और मृत्यु दर की समीक्षा करना, कालाजार के प्रसार को रोकने और इसके नियंत्रण के लिए प्रभावी उपायों पर चर्चा करना, कालाजार के मरीजों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता की समीक्षा करना और कालाजार के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को इसके लक्षण, कारण और रोकथाम के तरीकों के बारे में शिक्षित करने के लिए रणनीति बनाई गई है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि शहरी क्षेत्रों के अलावा सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्तर पर जन जागरूकता अभियान में मीडिया की भूमिका को पहले पायदान पर रखा गया है। क्योंकि मीडिया ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे किसी भी प्रकार की बीमारियों को रोकने में सहायता करता है।
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी (डीवीडीसीओ) डॉ ओम प्रकाश लाल कहा कि वर्ष 2027 तक जिला और राज्य सहित पूरे देश से रेत मक्खी बालू
के काटने से होने वाली कालाजार बीमारी को जड़ से मिटाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यही कारण है कि हम सभी को दवाओं की उपलब्धता, रोग की समय पर पहचान और रेत मक्खी बालू की रोकथाम को लेकर अपनी अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करना पड़ेगा। हालांकि इसके लिए ग्रामीण स्तर पर जागरूकता अभियान, निगरानी और इलाज की बेहतर व्यवस्था कराने के लिए आपसी समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है। कालाजार से पीड़ित मरीजों को मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में प्रति व्यक्ति 6600 रुपये राज्य सरकार की ओर से जबकि केंद्र सरकार के द्वारा 500 रुपए यानी 71 सौ रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में दिया जाता है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि यह राशि वीएल (रक्त से संबंधित) कालाजार में रोगी को प्रदान की जाती है। वहीं चमड़ी से जुड़े कालाजार (पीकेडीएल) में 4000 रुपये की राशि केंद्र सरकार की ओर सहायता राशि दी जाती है।
कालाजार नियंत्रण कार्यक्रम अंतर्गत उन्मूलन अभियान तहत बीमारियों की संख्या पर एक नज़र:
वर्ष 2021 में 185
(वीएल के 112 जबकि पीकेडीएल के 73)
वर्ष 2022 में 108
(वीएल के 57 जबकि पीकेडीएल के 51)
वर्ष 2023 में 64
(वीएल के 44 जबकि पीकेडीएल के 20)
वर्ष 2024 में 50
(वीएल के 36 जबकि पीकेडीएल के 14)
वर्ष 2025 में अभी तक मात्र 20 मरीज
(वीएल के 10 जबकि पीकेडीएल के 10)
इस अवसर पर सदर अस्पताल के अधीक्षक डॉ अनिल कुमार सिंह, डीवीबीडीसीओ डॉ ओम प्रकाश लाल, आरएचओ पटना से डॉ रवि शंकर सिंह, वैज्ञानिक ऋषिकेश और अभिषेक कुमार, डीवीबीडीसी नीरज कुमार सिंह, चिकित्सा पदाधिकारी डॉ राजकुमार राम, बसंतपुर और गोरेयाकोठी सीएचसी के एमओआईसी, डब्ल्यूएचओ के राज्य सलाहकार डॉ राजेश पाण्डेय और क्षेत्रीय समन्वयक डॉ माधुरी देवराजू, पीरामल स्वास्थ्य के कार्यक्रम प्रमुख राजेश कुमार तिवारी, फार्मासिस्ट श्यामबाबु सिंह, वीबीडीएस जावेद मियांदाद, भगवानपुर हाट सीएचसी के बीएमसी गिरीश चंद्र वर्मा और रतौली की आशा फेसिलिटेटर रागिनी सिन्हा सहित कई अन्य अधिकारी और कर्मी मौजूद रहे।