समुद्र मंथन
ऋषि दुर्वासा श्राप से, स्वर्ग भया श्रीहीन।
इंद्र सहित सब देवता, हो गए शक्ति विहीन।।
श्रीहरि के सम्मुख गये, किन्ही विविध विलाप।
हे सृष्टि पालक प्रभु, बेगी हारो संताप।।
दीन दशा सुन देव की, श्री हरि किन्ही उपाय।
सागर मंथन हेतु प्रभु, दिन्ही जतन बताय।।
अमृत से अमरत्व मिले, मिटे सकल संताप।
उसके दर्शन मात्र से, मिटे सभी उर ताप।।
क्षीरसागर का गर्भ है, विविध रत्न का खान।
उनके महिमा का किया, हरि ने दिव्य बखान।।
देव असुर मिलकर किये, सार्थक सिद्ध प्रयत्न।
सागर मंथन से मिले, दिव्य चतुर्दश रत्न।।
विष हलाहल, कामधेनु, उच्चैश्रवा, ऐरावत।
कौस्तुभ, कल्पवृक्ष, रंभा, लक्ष्मी, वारुणी पावत।।
चमकत चंद्र, तरू पारिजात, पांचजन्य धनवंतरि।
हरि कृपा से सब मिले, कहत बिजेन्द्र बखान करि।।
✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू)
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