विश्व श्रवण दिवस: बहरेपन की समस्या से निपटने के लिए समय रहते उपचार अतिआवश्यक!
मानसिकता में बदलाव: कान और श्रवण देखभाल को सभी के लिए वास्तविकता बनाने के लिए खुद को सशक्त बनाएं" थीम के साथ सदर अस्पताल में किया गया आयोजन:
लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए सामाजिक संगठनों, माता- पिता, शिक्षकों और चिकित्सकों की नैतिक जिम्मेदारी: सिविल सर्जन
सिवान (बिहार): आधुनिकता और भागमभाग वाली दौर में ध्वनि प्रदूषण की समस्या से निजात पाना मुश्किल हो गया है। आजकल हर तरफ किसी न किसी मशीन, गाड़ी या डीजे पर चल रहे गाने की तेज ध्वनि को आसानी से सुनी जा सकती है, जो लोगों के सुनने की क्षमता को कम कर रही है। नियमित रूप से तेज ध्वनि के सुनने या नजदीक रहने के कारण हम सभी बहरेपन का शिकार हो सकते हैं। उक्त बातें सिविल सर्जन डॉ श्रीनिवास प्रसाद ने सदर अस्पताल परिसर स्थित ओपीडी में विश्व श्रवण दिवस के दौरान कही। लोगों को बहरेपन की जानकारी देने एवं ध्वनि तरंगों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से ओपीडी में आने वाले मरीज़ों को सुनने की समस्या के लक्षणों की जानकारी देने के साथ ही बहरेपन से रोकथाम की भी जानकारी दी गई। हालांकि इस वर्ष मानसिकता में बदलाव: कान और श्रवण देखभाल को सभी के लिए वास्तविकता बनाने के लिए खुद को सशक्त बनाएं। जैसी महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर इस वर्ष का थीम रखा गया है। विश्व श्रवण दिवस के अवसर पर आने वाले सभी मरीज़ों से अपील की गई कि लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए सामाजिक संगठनों, माता-पिता, शिक्षकों और चिकित्सकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि युवाओं को श्रवण से संबंधित सुरक्षित आदतों के लिए शिक्षित के साथ ही प्रेरित भी करते रहें। ताकि युवा वर्ग इस तरह की बीमारियों से सुरक्षित रह सके। इस अवसर पर सिविल सर्जन डॉ श्रीनिवास प्रसाद, एनसीडीओ डॉ ओपी लाल, डीपीएम विशाल कुमार, एफएलसी इमामुल होदा, सिफार के डीपीसी धर्मेंद्र रस्तोगी, डाटा ऑपरेटर मनीष कुमार सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे।
बहरेपन की समस्या से निपटने के लिए समय रहते इस बीमारी का उपचार किया जाना अतिआवश्यक: डॉ ओपी लाल
प्रभारी जिला गैर संचारी रोग पदाधिकारी (एनसीडीओ) डॉ ओम प्रकाश लाल ने बताया कि भागम भाग के इस दौर में बहुत से लोगों में चिड़चिड़ापन जैसी शिकायतें सुनने को मिल रही हैं। जिस कारण बहरेपन या श्रवण दोष से बचाव एवं सुनने की क्षमता का ध्यान में रखने के लिए आमलोगों के बीच जागरूकता लाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 03 मार्च को विश्व श्रवण दिवस (वर्ल्ड हियरिंग डे) का आयोजन किया जाता है। विश्व की एक बड़ी आबादी इस बीमारी से ग्रसित है। जिसमें बच्चों से लेकर वयस्क एवं बुजुर्ग भी शामिल हैं। हालांकि बहरेपन की समस्या से निपटने के लिए समय रहते इस बीमारी का उपचार किया जाना अतिआवश्यक है। आधुनिक युग में लोगों की लगातार बिगड़ रही जीवनशैली के साथ ही ध्वनि प्रदूषण जैसे कारकों के कारण बहरापन एवं कम सुनाई देने जैसी शिकायतें बहुत ज़्यादा देखने को मिल रही है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 36 करोड़ से अधिक लोग कम सुनाई देने या बहरेपन के साथ जी रहे हैं, जबकि 12 से 35 वर्ष की आयु के लगभग एक अरब या उससे अधिक लोगों को शोर के संपर्क में आने के कारण बहरे होने का खतरा है।
वर्तमान समय की गर्भवती महिलाओं में तनाव, हाइपरटेंशन जैसी परेशानियों का मुख्य कारण: डॉ रूपाली रस्तोगी
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिसवन की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ रूपाली रस्तोगी ने बताया कि अगर तेज आवाज में लंबे समय तक लगातार रहा जाए तो इससे शिशु में कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। कोर्टिसोल एक स्ट्रेस हार्मोन होता है। इसके कारण बच्चा जन्म के बाद से ही चिड़चिड़ा हो जाता है। वहीं बहुत ज्यादा तेज आवाज में गाने सुनने से बर्थ डिफेक्ट होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे भ्रूण का प्राकृतिक विकास धीमा हो जाता है साथ ही इससे गर्भवती महिलाओं को भी तनाव, हाइपरटेंशन जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। बहुत तेज आवाज में गाने सुनने या ज्यादा देर तक शोर में रहने से बच्चा जन्म के बाद चीजों को तेजी से नहीं सीख पाता है। गर्भावस्था के अंतिम महीनों में तेज आवाज में गाने सुनने से बच्चा जरूरत से ज्यादा एक्टिव और लेबर पेन जल्दी होना शुरू हो जाता है जिससे प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए बच्चे के जन्म से पहले तेज आवाज में गाने सुनने, डीजे की आवाज से बचना चाहिए। अगर गर्भवती महिलाएं लंबे समय तक तेज आवाज में गाने सुनती हैं तो यह बच्चे के दिमागी विकास के लिए भी हानिकारक होता है। यह भ्रूण के साधारण विकास को रोकता है साथ ही बच्चा दिमागी रुप से भी कमजोर बन जाता है।