बिहार विधानसभा चुनाव 2025: प्रदेश के कायाकल्प का मार्ग और भाजपा के साथ नीतीश कुमार का गठजोड़!
✍️ राजीव कुमार झा
आज बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के पास सबकुछ है लेकिन भाजपा की तरह कोई अपना नेता नहीं है जो अपने कंधे पर इस पार्टी को लेकर बिहार में इसका पुराना गौरव और प्रतिष्ठा फिर से वापस लौटा सके। सचमुच ऐसे नेता अब किसी पार्टी में नहीं हैं और प्रदेश की तमाम पार्टियों में चाहे वह राजद हो या और पार्टियां यहां किसी पार्टी में नेताओं को उभरने का मौका ही नहीं मिला। पप्पू यादव ने इसीलिए राजद को छोड़ा था । बिहार में भाजपा की सारी की सारी राजनीति आज भी दिल्ली से तय होती है और जदयू में भी पार्टी की सारी कमान नीतीश कुमार के हाथों में केंद्रित रही है। इस पार्टी में आर सी पी सिंह को घोर अवसरवादी नेता के रूप में देखा जाता है। नीतीश जी इस दौरान कभी के सी त्यागी तो कभी प्रशांत किशोर को कभी राजीव रंजन सिंह को तो कभी संजय झा के हाथों में पार्टी की बागडोर सौंपते रहे और यह पार्टी आज फिर भाजपा के साथ है। और यह कहा जा सकता है कि आपात परिस्थितियों में राजद के भरोसे सत्ता के रथ पर सवार जदयू चुनावी समर में अपने पुरुषार्थ और भाग्य दोनों को लेकर सत्ता के मैदान में सबका आमना सामना करने जा रही है। सारे लोग जदयू की इस राजनीति से वाकिफ हैं।
कांग्रेस से जदयू का कोई मतलब नहीं है और अक्सर इस पार्टी ने कांग्रेस पर राजद के जंगल राज को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। ज्ञातव्य है कि बिहार की घोर बदहाली के काल में केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने कभी राबड़ी देवी की सरकार को बर्खास्त कर दिया था लेकिन कांग्रेस के असहयोग के कारण संसद में धारा 356 के तहत बिहार की तत्कालीन अक्षम सरकार की बर्खास्तगी रद्द घोषित कर दी गयी थी लेकिन यह कहा जा सकता है कि बिहार के शासन को बर्बादी की राह से सुशासन की पटरी पर लाने की दिशा में यह पहली पहल बिहार की राजनीति के आगे के काल में रंग लाई और नीतीश कुमार को साथ लेकर भाजपा ने लालू प्रसाद को सत्ता से बेदखल कर दिया और इस प्रकार प्रदेश के कायाकल्प का मार्ग प्रशस्त हुआ।