बाल कुपोषण रोकने में अनुपूरक आहार बेहतर शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए जरूरी!
कुपोषण को कम करने में अनुपूरक आहार की अहम भूमिका: डीपीओ
बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को बढ़ावा देने में अन्नप्राशन संस्कार का अहम योगदान: सीडीपीओ
6 से 9 माह तक के बच्चों को गाढे एवं सुपाच्य दलिया खिलाना चाहिए: महिला पर्यवेक्षिका
सिवान (बिहार): नवजात शिशुओं के लिए अन्नप्राशन संस्कार का मुख्य उद्देश्य बच्चे को पहली बार ठोस आहार खिलाना होता है, क्योंकि यह संस्कार 16 संस्कारों में से एक है। अन्नप्राशन संस्कार के माध्यम से बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास को बढ़ावा दिया जाता है। इस संबंध में महाराजगंज प्रखंड की बाल विकास परियोजना पदाधिकारी (सीडीपीओ) कलावती कुमारी ने कहा कि नवजात शिशुओं को 6 माह के बाद स्तनपान और अनुपूरक आहार की अत्यधिक जरूरत होती है। क्योंकि इस दौरान शिशु के शरीर एवं मस्तिष्क का तेजी से विकास होता है। इसे ध्यान में रखते हुए जिले के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर महीने में एक बार अन्नप्राशन दिवस आयोजित किया जाता है। इस मौके पर 6 माह के शिशुओं को अनुपूरण आहार खिलाया जाता है। इसके साथ ही उनके माता- पिता को इस संबंध में जागरूक किया जाता है। इसके अलावा सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर हर माह टेक होम राशन (टीएचआर) का वितरण किया जाता है, जिसमें 6 महीने से 3 वर्ष के शिशुओं के लिए चावल, दाल, सोयाबड़ी अथवा अंडा लाभार्थियों को उपलब्ध कराया जाता है। अन्नप्राशन दिवस पर लोगों को सेविकाओं द्वारा शिशुओं के लिए अनुपूरक आहार बनाने के विषय में भी जानकारी दी जाती है, जिससे उसे संतुलित भोजन उपलब्ध हो सके।
आईसीडीएस की डीपीओ तरणी कुमारी ने बताया कि बाल कुपोषण को कम करने में अनुपूरक आहार की अहम भूमिका होती है। क्योंकि छह माह तक शिशु का वजन लगभग दो गुना बढ़ जाता है। जबकि एक वर्ष पूरा होने तक वजन लगभग तीन गुना एवं लंबाई जन्म से लगभग डेढ़ गुना बढ़ जाती है। जीवन के दो वर्षों में तंत्रिका प्रणाली एवं मस्तिष्क विकास के साथ सभी अंगों में संरचनात्मक एवं कार्यात्मक दृष्टिकोण से बहुत तेजी से विकास होता है। इसके लिए अतिरिक्त पोषक आहार की जरूरत होती है। इसलिए जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर प्रत्येक महीने के 19 तारीख को 6 माह पूरे कर लिए शिशुओं का अन्नप्राशन कराया जाता है। सोमवार के दिन स्थानीय सिवान जिले के विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों पर छः माह तक के शिशुओं को अन्नप्राशन कराते हुए शिशु के परिजनों को शिशुओं के लिए स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार उपयोग करने की जानकारी दी गई।
महाराजगंज प्रखंड के सेक्टर एक की महिला पर्यवेक्षिका कुमारी नीलू चौहान ने कहा कि शिशु के लिए प्रारंभिक आहार तैयार करने के लिए घर में मौजूद मुख्य खाद्य पदार्थों जैसे - सूजी, गेहूं का आटा, चावल, रागा, बाजरा आदि की सहायता से पानी या दूध में दलिया को मिलाकर आसानी से इसको तैयार कर सकते हैं। वहीं बच्चों के आहार में चीनी अथवा गुड़ को भी शामिल करना चाहिए, क्योंकि उन्हें अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। हालांकि 6 से 9 माह तक के बच्चों को गाढे एवं सुपाच्य दलिया खिलाना चाहिए। हालांकि वसा की आपूर्ति के लिए आहार में छोटा चम्मच घी या तेल डालना चाहिए। दलिया के अलावा अंडा, मछली, फलों एवं सब्जियों जैसे संरक्षक आहार शिशुओं के विकास में सहायक होते हैं। हालांकि 6 माह बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार शिशु को देने के अलावा स्तनपान के अतिरिक्त दिन में 5 से 6 बार शिशु को सुपाच्य खाना खिलाना चाहिए। वहीं मल्टिंग आहार के रूप में अंकुरित साबुत आनाज या दाल को सुखाने के बाद पीसकर तैयार आहार से शिशुओं को अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। यदि आपका शिशु अनुपूरक आहार नहीं खाए तब हल्का हल्का कई बार खिलाना अच्छा रहता है।