गीता के अध्याय में कृष्ण और अर्जुन के संवाद!
नागपुर (महाराष्ट्र): नागपुर की सुप्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था हिन्दी महिला समिति में हाल ही में पूनम मिश्रा द्वारा गीता के अध्याय में जीवन मूल्य पर परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसका विषय था कृष्ण और अर्जुन के संवाद। इस परिचर्चा में प्रबुद्ध महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी कलम से अपनी बात लिखी।
इस दौरान शामिल अतिथियों के मत
रति चौबे ने कृष्ण अर्जुन के संवाद पर अपने विचार लिखें। वैसे आपको बता दूं कि पूरी गीता सही कृष्ण अर्जुन संवाद की है और कृष्ण ने बड़ी ही सुंदर ढंग से एक एक उपदेश दिए और यह सब हमारी रोजमर्रा जिंदगी का हिस्सा है। बस समझ अलग है। सोच अलग है। अर्जुन के मन की शंका को भी कृष्ण ने धीरज के साथ दूर किया और वो अर्जुन जो युद्ध मैदान में पहुंच तो गए थे लेकिन युद्ध के लिए तैयार नहीं थे और कृष्ण कैसे तैयार किया बड़ा ही रोचक है। निशा जी ने लिखा है कि गीता के एक एक शब्द सदुपदेश है। बिल्कुल सही लिखा आपने और आगे आपने जो लिखा है कि गीता के उपदेशों को आचरण में लाना होगा उन्हें अंतःकरण में धारण करना होगा बहुत। अनासक्त भाव से हमें बचना होगा।
डॉ ममता ने गीता में आत्मा धर्म परमात्मा से जोड़ने का जरिया है। गीता के हर अध्याय में सीख है, बिल्कुल सही लिखा आपने ममता जब अर्जुन शस्त्र उठाने के लिए तैयार नहीं थे युद्ध मैदान में तब कृष्ण के उपदेश से ही प्रभावित किया और युद्ध संपन्न हुआ।
भगवती जी ने आरंभिक शब्दों में लिखा है कि अर्जुन युद्ध मैदान में अपने बंधुओं को अपने सामने देख दुखी हो गये थे यही गीता का उपदेश है। समय आने पर अपनो के सामने भी शस्त्र उठाना होता है यही धर्म की लड़ाई है। कृष्ण के ज्ञान ने अर्जुन को कैसे तैयार किया यही गीता है । सांसारिक सुख से दूर रहकर जीवन में सफलता मिलती है। यही गीता का ज्ञान है।
गार्गी ने गीता ज्ञान को ज्ञान कोष बताया है। आपने गीता में कृष्ण के उपदेश का सुंदर वर्णन किया है।
मंजू पंत ने लिखा कि कृष्ण ने जब अर्जुन से कहा कि तीनों लोक मुझमें ही समाए हैं तब अर्जुन का मोह भंग हुआ और अर्जुन ने धनुष उठाया
सब मम प्रिय सब मम उठ जाए।
पूनम मिश्रा' ने अंत में अपनी बात रखी की गीता हमारी-आपकी जीवन का अंश है। गीता का हर अध्याय में मानव के लिए सीख है। कर्मण्येवाधिकारस्ते यह कृष्ण की बात वर्तमान में सत्य है कि हमें कर्म करते रहना है फल की अपेक्षा नहीं करना चाहिए। हमारे कर्म हमारे व्यक्तित्व की परछाई है। गीता के तृतीय अध्याय में कृष्ण ने अर्जुन से यह भी कहा की कोई भी मनुष्य बिना कर्म के जीवन जी नहीं सकता। मानव जीवन कर्म प्रधान है। सभी प्राणी किसी न किसी गुणों से बंधे हैं और अपने जीवन में कर्म करने के लिए बाध्य है। कृष्ण कर्म विज्ञान में कहते हैं। कर्म करें किंतु आसक्ति से बचे। जो कर्मयोग का पालन करते हैं वे आसक्ति से बचते और ऐसे मनुष्य ही श्रेष्ठ है। जब हम भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं तब ऐसे कर्म यज्ञ बन जाते हैं। यज्ञो का अनुष्ठान स्वर्ग के देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, लेकिन मानव जीवन में यह सुख संपदा प्रदान करता है। जीवन निर्वाह के लिए ऐसे यज्ञों की आवश्यकता है। इन यज्ञों के कारण ही वर्षा होती है अन्न उत्पन्न होता है। जो लोग जीवन के उत्तरदायित्व का निर्वाह नहीं निभाते वे पापी कहलाते हैं। उनका जीवन व्यर्थ है। परिचर्चा के सफल आयोजन की अध्यक्षता अध्यक्षा- रतिचौबे ने की। आभार सचिव रश्मि मिश्रा ने माना।