पूरे भारत वर्ष में यही एक शक्तिपीठ है जहां मिट्टी की पिंडी रूप में होती है मां की पूजा अर्चना!
बिहार की ऐतिहासिक और पौराणिक संस्कृति को समेटे हुए है अंबिका भवानी का प्रसिद्ध माता मंदिर:
अंबिका भवानी मंदिर राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ- स्थल के रूप में है विख्यात:
///जगत दर्शन न्यूज
सारण (बिहार): बिहार के गंगा नदी तट पर स्थित मां अंबिका भवानी आस्था, भक्ति एवं विश्वास की असीमित सत्ता को समेटे हुए हैं। इस शक्तिपीठ के दर्शन के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश व पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। शारदीय और चैत्र नवरात्र पर यहां विशेष पूजन का प्रावधान है। जिसकी वजह से नौ दिनों का यहां विशेष मेला का आयोजन किया जाता है। हालांकि अष्टमी के दिन विशेष रूप से निशा पूजा होती है जो श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बना रहता है। इस स्थान को अवधूत भगवान राम, तांत्रिक बाबा गंगा राम सहित कई अन्य सिद्ध साधकों की तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है। संतान, दीर्घ आयु व सुखमय जीवन के लिए नवविवाहित दंपती यहां चुनरी व प्रसाद चढ़ाने के लिए काफी दूर दराज से आते हैं। पूरे बिहार की ऐतिहासिक और पौराणिक संस्कृति को समेटे हुए सारण जिले के दिघवारा प्रखंड अंतर्गत आमी गांव स्थित अंबिका भवानी का प्रसिद्ध माता मंदिर स्थापित किया गया है।
अतिप्राचीन पौराणिक कथाओं और सारण गजेटीयर के पृष्ठ संख्या- 464 के अनुसार अंबिका भवानी मंदिर राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ- स्थल पर स्थित हैं। इसी स्थान पर माता सती ने पति भगवान शिव के निरादर से आक्रोशित होकर यज्ञ के हवनकुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने माता सती के शव को यज्ञ कुंड से निकालने के बाद अपने कंधे पर रख कर तांडव करने लग थे। प्रलय की आशंका को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को टुकड़े - टुकड़े में कर दिए। जहां- जहां सती के अंग गिरे उस स्थान को लोग शक्तिपीठ के रूप में जानने लगें। कुंड में जलते समय मां सती के शरीर की भस्मयुक्त अस्थी (यज्ञ- स्थल आमी) में हीं रह गई थी। यह स्थल सिद्ध- शक्ति पीठ अंबिका स्थान आमी के रूप में पूरे देश स्तर पर प्रसिद्ध हो गया।
पूरे भारत वर्ष में यही एक शक्तिपीठ है जहां मिट्टी की पिंडी रूप में होती है मां की पूजा अर्चना:
पुजारी राजेश पाण्डेय के अनुसार मार्केण्डय पुराण तथा दुर्गा सप्तशती के अनुसार कालांतर में राजा सूरथ व समाधी वैश्य ने मिट्टी की भागाकार पिंड बनाकर इसी स्थान पर वर्षो तक पूजा की थी, तब देवी ने प्रकट होकर उन्हें मनचाहा वरदान दिया था। इस मंदिर में वही मिट्टी की भागाकार विशाल पिंड आज भी विद्यमान है। मां भवानी की मिट्टी रूपी प्रतिमा का प्रतिदिन जल, शहद, घी व चमेली के तेल से अभिषेक किया जाता है। चमत्कार ही है कि मिट्टी रूपी प्रतिमा का एक इंच भी क्षरण नहीं हुआ है। पूरे भारत वर्ष में यही एक शक्तिपीठ है जहां मिट्टी की पिंडी रूप में मां की पूजा होती है। हालांकि पतित पावनी गंगा आदिशक्ति मां अंबिका भवानी के पांव पखारने के लिए यहां दक्षिण से उत्तर वाहिनी हो गई हैं। यहां श्रद्धालु भक्त मंदिर के गर्भगृह स्थित कुंड में हाथ डाल कर मन्नत मांगते है। कुंड से प्राप्त प्रसाद को मुट्ठी में बंद कर लाल वस्त्र में छुपाकर रखने से मन्नत पूरी हो जाती है फिर उस प्रसाद व वस्तु को कुंड में लौटा दिया जाता है। इस मंदिर में चैत्र और शारदीय नवरात्र पर श्रद्धालुओं की संख्या लाखों तक पहुंच जाती है। श्रद्धालु भक्तों की सुविधा के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग मिलता है। हलकी स्थानीय स्तर पर प्रशासन द्वारा सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है। लेकिन कभी भी प्रशासन की जरूरत नही पड़ी है। भक्त चुनरी- प्रसाद, विधि विधान से शक्तिस्वरूपा की आराधना करते हैं। दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों की मां भवानी मनोकामना पूर्ण करती हैं। सबसे अहम बात यह है कि बिहार की राजधानी पटना और सारण के मध्य गंगा नदी पहलेजा से आमी तक धनुषाकार हैं। वहीं अंबिका भवानी आमी में गंगा नदी उतरायण हैं।