ऑनलाइन परिचर्चा
आईना खुद से मेरा पहले सा रूप मांगे
नागपुर (महाराष्ट्र): हिंदी महिला समिति नागपुर द्वारा आज रविवार को एक ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित की गई, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया परिचर्चा का विषय था "आईना खुद से मेरा पहले सा रूप मांगे।" उक्त विषय उपस्थित सभी ने बहुत सारगर्भित विचार रखे। उक्त कार्यक्रम का संचालन अध्यक्षा रति चौबे ने किया।
सदस्यों के विचार
गीतू शर्मा
"फिल्टर और मेकअप के चलन में,
आईने ने भी क्या मांग लिया?
आईना भी तो अब झूठ ही बोले,
सच का अब अस्तित्व ही कहां रहा,
बात तो तब जब आईना वजूद मांगे,
आईना खुद से मेरा पहले सा रूप मांगे।"
गार्गी
"दे दूं धोखा सारे जमाने को की मैं हूं जवां।
पर क्या खुद से छिपा पाऊंगी मैं
ऐ आईने तू ही बता सच ये
जो मैं हूं आज वही सच है तू भी वही दिखा।"
निशा जी
आईने को सोच समझ कर मांग करनी चाहिए। रूप सौंदर्य भी सहेजने और संभालने की वस्तु है। ऐसे कैसे अपना रूप कोई दिखा दे किसी को भी।
निवेदिता शाह
आईना तो वही रहता है, किंतु रूप सौंदर्य परिवर्तनशील है जो समय के साथ निरंतर बदलता जाता है। समय के वेग में सब कुछ बदल जाता है।
सुषमा जी
आईना देखते देखते तो बचपन, जवानी सब बीत गई। अब अचानक आईने की ऐसी मांग क्यों? आईना मन की थाह लेकर आंतरिक सौंदर्य को क्यों नही देखता, जीवन तप का आकलन कर सत्कर्म और सफलता देखेगा तब आईने को सब सुंदर लगेगा।
भगवती जी
जीवन बसंत एक सा नहीं रहता। निरंतर परिवर्तनशील है। ना एक सी काया रही, ना एक सी छाया, तो आईना क्यों भरमाया।
किरण जी
जैसा रूप होगा आईना वही दिखायेगा। समयानुसार खिलता चेहरा मुरझाएगा , तो आईना वही बताएगा। उम्र और सूरत हमेशा एक से नही रहते।
ममता जी
आईना मेरा सच्चा साथी है, जैसी मैं रही वैसे ही आईना दिखाता गया। आईना अगर मुझसे पहले जैसा रूप मांग रहा है, तो पहले मुझे भी पहले जैसा रूप दे दे।
मंजू जी
आईना कभी नही बदलता ना समय के साथ ना परिस्थिति के साथ, बदलते तो हम है .हमारा रूप स्वरूप है।
रश्मिजी
चाहे तो ले ले आइना मेरा रूप। आईना क्या जनता नही जीवन पथ पर चलते हुए कितने ही संघर्षों का सामना करते हुए अपना पूर्ववत रूप खोया है, तो अब जैसे है वैसे ही आईना दिखायेगा।
अमिता जी
कभी आईना देखकर अपने रूप पर ही मोहित होते थे अब झुर्रियों और सिलवटों में जीवन की सारी गाथा झलकती है आईना झूठ नही बोलता जैसे होंगे वही दिखेंगे ना की जैसे हम चाहते है वैसे दिखेंगे।
निवेदिता पाटनी
आईना देखने की आदत हो गई है, जब जब भी आईना देखा। अपने रूप पर इठलाए, ,इतराएं। अब जब ढल चुका सब तो फिर पहले सा रूप चाहे आईना भी अब तो कुछ बदल ना पाए।
जिगिशा जी
आईना हमदम, हम कदम रहा। बचपन से ही हर बात में हंसना, रोना, सुख दुख सब। आईने के साथ में जब जब भी आईना देखा खुद में हिम्मत पाई। अपनी छवि देख देख कर खुदको सुंदर ही नज़र आई।
रेखा जी
आईना देखने का भी एक दौर था। जीवन की आपा धापी में अपने आप शौक खतम होता गया और आईने से दूरी बढ़ती गई, आईना सच दिखाने में कभी गुरेज़ नही करता।
रेखा जी
सावन सा मनभावन रूप सौंदर्य आईना हमेशा ही दिखाता आया है। समय के साथ परिवर्तन के बाद भी ऐसे ही रूपवान दिखाए तो कोई बात हो।
रूबी जी
आईना तुम क्या मुझसे मेरा पहले सा रूप मांगते हो मेरे रूप सौंदर्य के तुम ही तो साक्षी रहे हो। हमेशा से , एक जगह पर खुद लटके रहते हो। मैं ना पोंछु तुम्हें तो मैं क्या कोई कुछ ना देख ओए तुम में
आंतरिक सुंदरता ही चेहरे पर दिखती है, इसलिए मैं सुंदर थी और हूं।
नंदिता जी
ऐ आईने सुनो तुम्हारा शुक्रिया जीवन में खुद को सजा संवारकर हमेशा ही तुमने मुझे खूबसूरत ही दिखाया है। इठलाते इतराते मेरा प्रतिबिंब तुममें देखकर मैं फूली नहीं समाती। पर तुम मुझसे पहले सा मेरा रूप ना मांगो, क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ रूप भी बदला है और पर तुम तो वही रहोगे हमेशा ही।
अध्यक्षा रति जी
कभी किसी दौर में आईना हमजोली हुआ करता था। मेरा नादान ने आज अचानक ही मुझे पुकारा और तो मैं हतप्रद हो गई। कैसे उससे कहती कि वो भी अब पहले जैसा ना रहा। अपनी धुंधलाई आंखों से बस उस धुंधलाए आईने को देखती रह गई।
कार्यक्रम में सखियों के उत्साहपूर्ण सहयोग के लिए अंत में भगवती जी ने सभी का आभार प्रकट किया।