अरमां मेरे
/// जगत दर्शन साहित्य
तो याद आया मुझे
रात की सीढ़ी के सहारे,
उतारने है सपने,
आसमां की गोद से
बड़ी तमन्ना है,
ले आऊ उन्हें जमीं पर
शोर इतनी गज़ब थी,
अपनी ही खामोशियों की
सुन ना सके,
ज़मींदोज़ कर दी उन सपनों को
आसमां की गोद में अरमां मेरे……
ठहरने के साथ,
मुद्दतों बाद सुनी है इन खामोशियों को
अलग अलग,
एक एक कर
तब्दील हो गये सपनों में,
अरमां ही थे मेरे, नन्हें से
शायद इन्हें पा सकूँ मैं आज,
न जाने फिर कब आये मुझे याद
उतारने है अपने ही सपने,
आसमां की गोद से
अरमां मेरे ….
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