✍️किरण बरेली
/// जगत दर्शन न्यूज
1
यह रंगीला मनभावन लुभावना दरख़्त,
अपनी मादक देह से,
सुर्ख रंगो की रंगोली,
वसुंधरा पर उकेर रहा है।।
खुशबू घोल-घोल कर
फिज़ाओ को नशीला नशीला
कर रहा है।
2
कान्हा की रंग भरी रंगीन बासुँरी
फागुन में बज उठी है,
रंग आतुर हो रहे हैं,
छलकने को, बरसने को।
राधिकाएँ भी हो रही दीवानी,
मन उनका भी अब बहक रहा है,
परदेस गए साजन के,
खत आने लगे मुहब्बत के,
बाँट जोहती सजनी के,
आँखों का अंजन,
गोरे- गोरे गालों को
विरह रंग में रंग रहा है।