नव वर्ष के प्रथम दिन हर कोई खुशियां मनाने में मशगूल रहता है। वहीं अब यह समय आ गया है कि हम सिर्फ अपनी खुशियों के साथ-साथ अन्य लोगों की भी खुशियों के बारे में सोच सके। अपने देश व अपने देश के भविष्य के बारे में सोच सके। नए वर्ष पर हम कुछ शपथ लें!-
किरण बरेली

✍️ कवियित्री: किरण बरेली
यूँ तो समय हर वर्ष बदलता है।
परिवर्तन संसार का नियम है।
वक्त कब किसके लिए रूकता है?
गुजरा पल हमें बहुत कुछ अनुभव दे जाता है।
तरह -तरह से जीने की कला सिखा जाता है। चलिए इस बार कुछ,
कुछ नया करे कुछ नया सीखें।
वजह-बेवजह जो अपने!
बेगाने हमसे रूठे हैं!
उन्हें मना लिया जाए।
किसी की छोटी।
बड़ी भूलों को माफ करने का संकल्प करें।
खुशियों पर सबका हक बराबर है।
ढेर सारी खुशियों का उजाला बाँट कर,
जहाँ रौशन करें।।
आहिस्ता-आहिस्ता वक्त के रथ का पहिया,
जाने कहाँ खिसक गया ?
दिवस- रातें तारीखें
थक चले क्षितिज के उस पार।
सूरज आसमानी नदी में
अस्त होने चला।
उदित हो रहा नव वर्ष में
खुशियों भरा उजाला।
हम आप तो सभी हैं वही
बदल रहा तो समय।
समय करवट ले रहा।
मंगलमय सुखदायी कामनाओं
संग प्रार्थना करते हैं
देश के नौनिहालों की
मासूमियत खिली-खिली रहे
मौसम का मिज़ाज सदा सभंला रहे।
कभी तीखी धूप की आलपीन न चुभे।
धूप-धूप सफर सही
शीतल छाँव का भी ठौर मिले।
बारिश आए जरूर
कहर ना बरसाए कभी।
खेतों की मेड़ो पर
किसानों का स्वप्न संसार सजे।
जब-जब आँखों से छलके
बेइंतहा-खुशियां ही छलकें।
बर्ष भर जो बीता सो रीत गया।
अतीत बहुत पीछे छूट गया
धूल सने अतीत के
पैरों को धो लें।
नव उमंग उत्साही कदम लिए
नवीन नवपथ पर अग्रसर हो जाएं।।