सैकड़ो युवतियों ने सरयू नदी में किया पीड़िया विसर्जित! सेल्फी लेने की रही होड़!
/// जगत दर्शन न्यूज़
सारण (बिहार) संवाददाता मनोज सिंह: भाइयों की लंबी उम्र, खुशहाली व सुख समृद्धि के लिए पिरिया त्योहार को लेकर गुरुवार की सुबह रामघाट पर ब्रतियों की भारी भीड़ उमर पड़ी। सैकड़ो युवतियां रामघाट पहुंचकर सरयू नदी में पीड़िया विसर्जित किया। इसे लेकर सैकड़ो ट्रैक्टर, पिकअप, ऑटो व बोलेरो पर यूपी तथा माँझी के विभिन्न क्षेत्रों से व्रतिओं के पहुंचने पर माँझी -छपरा मुख्य पथ घंटों जाम हो गया, जिसे पुलिस प्रशासन ने पहुंचकर जाम हटवाया।
रेलवे पुल पर सेल्फी लेने पहुंचे युवक-युवतिओं को पुलिस ने खदेड़ा!
पीड़िया के दौरान रेलवे पुल पर सेल्फी लेने के लिए युवक युवतियों की भीड़ उमड़ पड़ी। बड़ी संख्या में युवक युवतियां रेलवे पुल पर पहुंचकर सेल्फी लेने लगी। कुछ रेलवे ट्रैक पर तो कुछ पुल के अंदर घुसकर सेल्फी ले रही थी, जिससे खतरा का डर बना हुआ था। सूचना मिलते ही पुलिस वहाँ पहुंचकर सेल्फी लेने वालों को खदेड़ा।
खास है यह पीड़िया व्रत!
भारत में हर रिश्ते के लिए एक त्योहार है और भाई बहन के लिए तो कई त्योहार मनाये जाते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण पर्व प्रत्येक वर्ष अगहन शुक्ल पक्ष के एकम को मनाया जाता है। इसे रुद्रव्रत पीड़िया के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार भाइयों की लंबी उम्र, सुख व समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस त्यौहार को रूद्र व्रत भी कहा जाता है।
पीड़िया का विधान और महत्व!
पौराणिक कथाओं में इसका महत्व प्राचीन काल से ही बताया जाता है। बोलचाल की भाषा में पीड़िया के नाम से प्रचलित रुद्रव्रत को ज्यादातर लड़कियां ही करती हैं। वे इस व्रत के माध्यम से अपने भाईयों की खुशहाली, लंबी उम्र, सुख समृद्धि की कामना करती हैं। व्रत के संबंध में बताया जाता हैं कि इसमें रात भर जगकर पीड़िया के गीतों गाये जाते है। इसकी शुरुआत गोवर्धन पूजा के दिन से ही हो जाती है। गोवर्धन पूजा के गोबर से ही घर के दीवारों पर छोटे छोटे पड़ों के आकार में लोक गीतों के माध्यम से पीड़िया लगायी जाती है। इस दौरान लड़कियां घर की बुजुर्ग महिलाओं से अन्नकूट से कार्तिक चतुर्दशी तक छोटी कहानी व कार्तिक पूर्णिमा से अगहन अमावस्या तक सुबह स्नान कर बड़ी कहानी सुनती है। व्रत के दिन छोटी बड़ी दोनों कथाएं सुनती हैं। इस व्रत में नए चावल व गुड़ का रसियाव (गुड़ चावल का बिना दूध का खीर) बनाया जाता है, जिसे व्रती दिन भर उपवास रहने के बाद शाम को सोरहिया के साथ ग्रहण करती हैं। खास बात ये है कि धान की संख्या भाईयों की संख्या के अनुसार होती है। यानि व्रत रखने वाली लड़की के जितने भाई होते हैं उसी संख्या के हिसाब से प्रति भाई 16 धान से चावल निकलाकर वो सोरहिया निगलती है। व्रत के बाद इस को सुबह तालाब या नदी, पोखरों में पीड़िया के पारंपरिक गीतों के साथ बड़े ही उत्साह से विसर्जित करती हैं। साथ ही कन्यायें आपस में चिउड़ा और मिठाई एक दूसरे से आदान-प्रदान करती हैं, फिर पारण कर व्रत तोड़ती हैं।