माँ दुर्गा के नौ रूपों को नमन!
✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू)
तू असीम अनंत में, विद्यमान गतिमान।
तेरा आदि न अंत है, तू हीं ब्रह्म समान।।
शैलपुत्री
माँ ममता की छांव में, रखना सदा संभल।
शैलपुत्र सुखदायिनी, तुम हो दीनदयाल।।
दिव्य अलौकिक रूप है, दिव्य अलौकिक नाम।।
शैलपुत्र माँ आई के, बना दो बिगड़े काम।।
अर्धचंद्र धारण किये, बृष पर हुई सवार।
त्रिशूल धारी माँ मेरी, कर दो बेड़ा पार।।
ब्रह्मचारिणी
बाँयें कर में लिए कमंडल, दायें रुद्राक्ष विशेष।
कठिन परिश्रम करने, को माँ दे पवन संदेश।।
कठिन तपस्या करके माँ ने, मन इच्छित वर पाया।
तप की शक्ति बहुत बड़ी है, सबको है बतलाया।।
ब्रह्मचर्य का पालन करके, निज मंजिल का ध्यान करो।
गुरु चरण में शीश झुकाकर, ज्ञानामृत रसपान करो।।
चंद्रघंटा
रोग शोक भय नाश कर, दो शान्ति का दान।
माँ मबका कल्याण करो, तुम हो कृपा निधान।।
चंद्र विराजे माथ पर, अस्त्र-शस्त्र है हाथ।
सुख समृद्धि घुमते, हरदम तेरे साथ।।
चंद्रघंटा के नाम से, माँ तुम हो विख्यात।
रोग शोक भय नाश कर, करो शत्रु आघात।।
हो बिजेन्द्र शरणागता, बहु विधि करता टेर।
मम सुधी माता लीजिए, तनिक न कीजै देर।।
कुष्मांडा
अष्टभुजी सिंहासनी, सोहे दिव्या शरीर।
सीद्धि निधि सब देई के, शीघ्र हारो मम पीर।।
सूर्य मंडल के मध्य हो, साहस दिव्या अपार।
ज्ञान अमृत बरसाइ के, कृपा करो इक बार।।
शरणागत हो मैं करूँ, विनती बारम्बार।
माता कुष्मांडा हमें, साहस देहू अपार।।
स्कंदमाता
हाथ कमल का फूल लिये, गोदी में स्कंद।
शेर सवारी बाँटती, भक्तों में आनंद।।
स्कंद माता कीजिये, भक्तों पर उपकार।
दया धर्म से बाँटिये, सबमें निर्मल प्यार।।
कात्यायनी
दो से वर मुद्राधरे, सोहे इक तलवार।
इक में कमल सजाई के, होके सिंह सवार।।
भक्तों का उद्धार करे, दुष्टों का संहार।
सेवक जन को बाँटती, झोली भर के प्यार।।
कत्यायनी कल्याण करो, घेरे है संताप।
फँसा हूँ मैं भव फंद में, आई बचाओ आप।।
कालरात्रि
माँ दुर्गा की सप्तम रूप, माँ कालरात्री कहलाती है।
अति भयंकर रूप से माता, दुष्टों को दहलाती है।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर, नाम सुनत हीं भागे।
उनकी कृपा से सुन लो भक्तों, सोई किस्मत जागे।।
महागौरी
महागौरी के जाप से, असम्भव सम्भव होते।
इनके भक्त सदा सृष्टि में, बीज प्यार के बोते।।
श्वेत वसन है श्वेत सिंहासन, सोहे बैल सवारी।
त्रिशूल डमरू लिए हाथ में, महागौरी माँ प्यारी।।
सिद्धिदात्री
सब सिद्धि को देने वाली, सिद्धिदात्री का ध्यान करूँ।
मां दुर्गा की नवी रूप का, सेवा और सम्मान करूँ।।
अज्ञानता को दूर करो माँ, ज्ञान की जोत जगाओ।
दिव्य अलौकिक शक्ति देकर, भक्तों को हरसाओं।।
कमल सिंहासन बैठी माँ को, कमल फूल अति भावे।
श्रद्धा नेह लगावे जो नर, सकल मनोरथ पावे।।
यक्ष असुर गंधर्व देव सब, तेरा ध्यान लगाते।
तेरे ही आशीष मइया, सकल मनोरथ पाते।।
शंख चक्र है गदा हाथ में, कमल फूल अति सोहे।
सिंह सवारी रक्त वसन, माता सबका मन मोहे।।
कामी क्रोधी दीन हीन नित, तेरा ध्यान लगाऊँ।
ऐसा दो आशीष हे माता, तेरा दर्शन पाऊँ।।
हे कल्याणी माँ जगदम्बा, सिद्धिदात्री गुण खानी।
सर्वोत्तम तिहुँ लोक में मइया, कहते वेद बखानी।।
कहे बिजेन्दर जो माँ से नित, सादर नेह लगावे।
पूरे हो हर काज जगत में, सकल मनोरथ पावे।।
सर्वोत्तम सर्वव्यापी तेरा, जो नित ध्यान लगता है।
निर्भय निर्विवाद वह मइया, सकल मनोरथ पता है।।
तू अनंत है, कथा अनंत, तू हो अनंतपुर वासी।
ब्रह्मा विष्णु सदा यश गावे, ध्यान धरे कैलाशी।।
माँ दुर्गा के नौ रूप का, जो नित सुमिरन करता है।
उसका हो कल्याण जगत में, सबका पातक हरता है।।
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✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू)
पता: गैरत पुर, माँझी, सारण (बिहार)
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