न्याय (कहानी)
/// जगत दर्शन साहित्य
✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत, खेडी राओ वाली (कैथल)
/// जगत दर्शन न्यूज
न्याय (कहानी)
बहुत ही पुरानी बात हैं। अवध रियासत का राजा मान सिंह राठोड़ बहुत ही न्यायप्रिय, दयालु , समझदार और शक्तिशाली था। उसके राज मे रियासत की प्रजा सुखुसमृद्ध और खुशहाल थी।किसी जन को किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी। सारी प्रजा अपने राजा का गुणगान किया करती थी।
राजा किसी भी छोटी या बड़ी बात निर्णय बड़ी ही समझदारी से किया करता था।उसके निर्णय की कसौटी बहुत खरी थी और वह किसी भी बात का निर्णय करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखता था कि किसी के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय ना हो। इसलिए राजा की महिमा का डंका आस पास की रियासतों में भी बजता था।
इसी रियासत के एक छोटे से गाँव में शमशेर सिंह नाम का किसान भी रहता था। उसके पास जमीन की कोई कमी नहीँ थी। वह बहुत ही खुशहाल जीवन जी रहा था और पूरे गाँव में उसकी प्रतिष्ठा और सम्मान था। उस किसान के चार पुत्र थे।चारो ही बहुत सुंदर और सुडौल शरीर के मालिक थे, जिनमें से तीन तो बहुत नेक, परिश्रमी और इज्जत कमाने और करवाने वाले थे। लेकिन उस किसान का चौथा पुत्र बहुत ही ज्यादा नालायक और बिगडैल था। ऐसा कौनसा अवगुण था जो उसमें नहीं था।
हर रोज वह किसी ना किसी प्रकार का उलाहना घर में लाया करता था और उसका अपने माता- पिता,भाइयो व ग्रामवासियों के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। जहाँ तक कि वह अपने पिता जी के साथ गाली गलोच व भाइयों से मार-पीट किया करता था। किसान अपने चौथे पुत्र के व्यवहार और आचरण से बहुत परेशान था।
किसान बीमार रहने लगा और उसका अंतिम समय नजदीक गया और उसने एक दिन अपनी जमीन की विरासत तीन पुत्रों के नाम कर दी और चोथे पुत्र को अपनी चल अचल संपत्ति से बेदखल कर दिया, लेकिन उसने विरासत में चारों पुत्रों में से किसी भी पुत्र के नाम का जिक्र नहीं किया, जिसका खुलासा उसने किसी के साथ नहीं किया। और एक दिन वो किसान शमशेर सिंह भगवान को प्यारा हो गया।
चारों पुत्रों में संपत्ति बंटवारे के लिए पंचायत बैठी, जिसमें गांव के गणमान्य व्यक्ति और नजदीक के रिश्तेदारों ने भाग लिया।लेकिन जब किसान की जीते जी लिखी विरासत को पढ़ा गया तो पंचायती स्तब्ध रह गए। विरासत में चल – अचल संपत्ति को तीन पुत्रो में समान विभाजित किया था और चौथे पुत्र को बेदखल किया गया था, लेकिन किसी के नाम का जिक्र नहीं था। पंचायत द्वारा बेदखल पुत्र के बारे में निर्णय लेना
मुश्किल हो गया। धीरे धीरे यह मामला रियासत के राजा की कचहरी में चला गया। विरासत को पढ़ कर राजा असमंजस में पड़ गया, क्योंकि वह किसी के साथ न्याय नहीं करना चाहता था। राजा का एक बहुत ही समझदार वजीर था, जिसकी वह महत्वपूर्ण मामलों में सलाह लिया करता था।
सारा मामला जब उसको बताया गया तो उसने कहा कि यह कोई मुश्किल कार्य नहीं ।इस का निर्णय वह आसानी से कर देगा, लेकिन वजीर चारो पुत्रों से अकेले अकेले बात करना चाहता था। वजीर एक अलग कमरे में बैठ गया और उसने चारों को बारी – बारी से बुलाया।सभी से एक ही सवाल किया कि उनका पिता बहुत ही बेकार और घटिया व्यक्ति था जिसने जानबूझकर कर चारों में से एक बेटे को जायजाद से वंचित रख गया और उसने लालच देते हुए कहा कि वह राजा को कहकर संपत्ति का हिस्सा उसके नाम कर देगा, लेकिन उसने उनको अपने पिता की कमरे में सामने रखी तस्वीर पर तीन जूते मारने का प्रस्ताव रखा।
वजीर कु यह बात सुनकर किसान के तीनों पुत्रों ने ऐसा करने से मना कर दिया और उन्होंने ने यही कहा कि उनको ऐसी संपत्ति में हिस्सा ही नहीं चाहिए ।लेकिन जब चौथे पुत्र को अंदर बुलाया गया और जब उसके सामने वही प्रस्ताव रखा गया तो उसने वजीर की बात में हाँ में हाँ मिलाते हुए बिना सोचे समझे झट से अपने पिताजी की तस्वीर पर तीन नहीं बल्कि कई जूते जड़ कर दिए थे। निर्णय हो चुका था….. ….और वह चौथा वही नालियक, आवारा और बिगड़ैल बेटा था।संपत्ति को तीनों में बांटकर चौथे पुत्र को बेदखल कर दिया गया था और राजा मान सिंह राठौर अपने वजीर की समझदारी पर खुश था, जिसके कारण वह सही और सटीक न्यायपूर्ण निर्णय लेने में कामयाब हो पाया था।