आजाद देश में हम, कितने आजाद है?
✍️किरण बरेली
शिक्षा के मंदिर से दूर
गली चौराहे सड़कों पर,
नन्हें नन्हें नौनिहालों का हुजूम,
उमड़ पड़ा है। 
दिल मेरा ये कैसे कह दें,
भारत की यह भावी पीढ़ी बदल रहा है।
गरीबी तन और मन में,
लपेटे जिनकी आँखों में,
कोई सजीला स्वपन नहीं है। 
मासूम नयनों में तैरता
केवल रोटी का ख्वाब है। 
अधरों पर भोली मुस्कान नहीं,
लड़कपन की डगर गुम है, 
ये बच्चे नहीं,
हो गए बड़े सयाने हैं। 
चंद सिक्को की तलाश 
निकल पड़े हाथों में लिए तिरंगा। 
बेच रहे भारत का झण्डा। 
यह तो हमारी शान है,
मेरे देश का अभिमान है। 
लेकिन ये नादान अनपढ़,
क्या समझे?
आज आजादी का उत्सव है। 
शिक्षा के उजियारो से मीलों दूर,
अंधियारों में पलने वाले, 
बुझते हुए तारें हैं। 
ये बच्चे कब व कैसे बोलेंगे
मेरा भारत देश महान। 
जाने कब होंगे ये लोग आजाद,
संघर्ष कर रहे जीवन से? 
कहाँ विलुप्त हुआ,
बापू के सपनो का भारत। 
प्रश्न सभी प्रश्न ही रह गए, 
अभिव्यक्ति पर सौ सौ पहरे लग गए।
आजाद देश में हम,
कितने आजाद है?
न जाने किन किन के नजर लग गए!
