तेरे गाँव का मेरा पहला सावन!
सावन भी कभी गजब की आकृतियां बनाती है दिल में। वही सब पुरानी यादें..जो कभी आती है जिंदा करने हमे..!
रचना: किरण बरेली
बीते कितने बरसो से,
बरसातो में,
लिखती आ गई हूँ!
जिक्र वो पहली-पहली बरसात का!
जाग गई है आज,
कुछ मीठी-मीठी सी,
बरसाती यादें!
गिरती रिमझिम बूँदों के संग,
घिर आई है घनी उदासी!
धु़ँधले वक्त के दर्पण में,
तैर गया है तेरे गाँव का,
मेरा पहला सावन।
गिरती बरखा की बूँद-बूँद में,
झाँक रही है छवि,
मेरी और तुम्हारी!
अब तक रखा सभ्माले मैनें,
मेरे गुजरे ख्वाब सुनहरे।
बारिश में फिर भीगा,
सावन मनभावन।
तेरे गाँव का मेरा,
पहला-पहला सावन।
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