शिक्षा, संस्कृति और समाज
आज के छात्र ही देश के भविष्य हैं !
लेखक: राजीव कुमार झा
आधुनिक काल में हमारे देश के विकास में शिक्षा की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है और यहां सरकार ने समाज में सभी लोगों को शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य तय किया है। आजादी के बाद संविधान में आठ से चौदह वर्ष के सभी बालकों को प्राथमिक शिक्षा देने का निर्देश दिया है और इसके बाद शिक्षा का अधिकार कानून शिक्षा को समाज में और भी अधिक व्यापक बनाने की दिशा में पहल करता है। हमारे देश में वर्तमान समय में शिक्षा की औपचारिक स्कूली व्यवस्था के कई आयाम हैं और इनमें छात्रों की चारित्रिक उन्नति से जुड़ी बातें महत्वपूर्ण हैं।
यह बहुत जरूरी है कि विद्याध्यन काल में छात्रों के भीतर सद्गुणों का विकास हो और उनमें मौजूदा समय, समाज और परिवेश के प्रति आत्मीयता का समावेश हो। भारतीय संस्कृति में जीवन की जितनी सारी अच्छी बातों का समावेश है, यह जरूरी है कि विद्यालय की औपचारिक शिक्षा में इससे जुड़ी बातों का भी समावेश हो और उनमें सद्भाव, शांति, सह अस्तित्व की भावना का विकास हो। हमारे समाज में आज भी जातिप्रथा, सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार इन सामाजिक बुराइयों का काफी प्रचलन है। यह ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि छात्रों के मनोगत विकास में समाज का वर्त मान परिवेश और इससे उपजी मनोग्रंथियां बाधक तत्व के रूप में सामने न आयें और उनके संस्कारों में ईमानदारी, कर्मठता के अलावा साहस और कर्तव्यनिष्ठा की भावना का समावेश हो।
छात्रों को अपने माता - पिता के अलावा अपने पड़ोसियों और मित्रों इनके प्रति भी समुचित व्यवहार की सीख देना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। वर्तमान समय में मीडिया पर भौतिक जीवन संस्कृति से जुड़ी बातों की चर्चा ज्यादातर देखने को मिलती है और यहां समाज देश की सदियों पुरानी आत्मिक संस्कृति से दूर होता प्रतीत होता है इसलिए छात्रों को प्राचीन धर्म अध्यात्म संस्कृति की बुनियादी बातों से अवगत कराया जाना आवश्यक है। हमारा देश एक धर्म निरपेक्ष देश है और यह जरूरी है कि हम इस अनुरूप अपनी राष्ट्रीय जीवन संस्कृति के विभिन्न सोपानों से छात्रों को अवगत कराएं ताकि उनमें प्रांतीयता की जगह राष्ट्रीय चेतना का विकास हो और वे समर्थ नागरिक बनकर देश के भावी कर्णधार के रूप में सारी जवाबदेही अपने कंधों पर उठा सकें। आज के छात्र ही देश के भविष्य हैं।