लक्ष्मी साथ विराजती,पीतांबर परिधान।
● रचना:विजेंद्र कुमार तिवारी
/// जगत दर्शन न्यूज़
लक्ष्मी साथ विराजती,पीतांबर परिधान।
शंख चक्र के साथ हीं,वर मुद्रा पहचान।।
शेष सिंहासन पर सजे,अद्भुत छवि अनूप।
हाथ जोड़ बंधन करूँ,हे सृष्टि के भूप।।
गरुड़ सवारी है तेरी,गदा चक्र है साथ।
कमल पुष्प के साथ हीं,वर मुद्रा का हाथ।।
विपदा आन पड़ी प्रभु, सुन लो मेरी टेर।
कहे बिजेन्द्र सिर नाई के,करो तनिक ना देर।।
सतयुग त्रेता साथ ही,द्वापर की उद्धार।
विह्वल संत समाज है,कलयुग में कर पार।।
दुर्जन अधम दुराचारी,की आई अति बाढ़।
साथ जोड़ द्वारे तेरे,आश लगा कर ठाढ़।।
हे गिरधारी आइए,होके गरूण सवार।
दुविधा में डूबे सभी,कर दो भव से पार।।
पाप-पुण्य नहीं सुझता,हालत है अति दीन।
घोर कलह के बीच हूँ,सब कुछ लगे मलीन।।
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तुझ बिन कौन सुने मेरी,हूँ निर्बल नादान।
भटक रहा भ्रम जाल में,नहीं खुद की पहचान।।
एक सहारा आपका दूजा नहीं आधार।
हे त्रिपुरारी आइके, कर दो भव से पार।।
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