★ जगत दर्शन साहित्य ★
रूपमाला या मदन छंद : मनोज द्विवेदी
शारदे तुमको नमन है , मातु दे आशीष।
छंद पावन लिख रहा हूँ, रख चरण तव शीष।
कर कृपा तू कर सकूँ मै, वंदना नित ईश।
तू प्रकृति है तारिणी है, तू बनी जगदीश।।
भावना उर में बसी अब, साधना कर छंद।
कर दया जगतारिणी हो, मुक्ति कारक बंद।
हर सृजन में मातु तेरी, अर्चना के भाव।
सौंपता पतवार जीवन, डूबती अब नाव।।
सीखना रुचिकर लगे नित, छंद पावन गीत।
प्राण में तू हीं बसे अब , हो नवल संगीत।
दुख - निराशा दूर हों सब, घट न जाये प्रीत।
वासनाओं से लडूँ मैं, दे सदय हो जीत।।
कर्मयोगी बन दया से, हो नहीं अभिमान।
जीव जितने हैं धरा पर, मैं करूं सम्मान।
रूप तेरा ही दिखे माँ, चेतना का बोध।
कौन हूँ मैं तू बता माँ, कर सकूँ यह शोध।।
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रचना : मनोज द्विवेदी