★ जगत दर्शन साहित्य ★
"वक्त एवं तारीखों से मैनें गुज़ारिश की है। अधूरे ख्वाब जो दिल में बाकी रह गए हैं, उन किस्तों की अदायगी अदा करते चलूं। साथियों,मित्रों नव वर्ष पर मेरा स्नेह पूर्वक नमस्कार! एक छोटी सी गुजारिश की है मैंने, जिसे अदा करने की खास चाहत है। शब्दों में पिरोया है आप पढियेगा, अच्छा लगे तो मेरी लेखनी की सार्थकता है। धन्यवाद! जय हिंद।": किरण बरेली
तारीख़ो में गुज़र गया वक्त
किरण बरेली
काश ये गुज़रते पल ठहर जाते,
मन की अनकही,
कहना बाकी है।
ठहरे हुए उस समय की किताब में,
दिल का अफसाना,
लिखना बाकी है।
नसीब का लिखा तो हम जी ही चुके हैं,
अब औरों के लिए,
जी लेना बाकी है।
वक्त की रफ़्तार तेज
बहुत तेज चल रही है।
चंद सांसे मिल जाए क्योकि,
इल्तिज़ा बाकी है।
दिल के मेरे कोरे पन्ने,
अधूरे और उदास हैं।
इसमे जिंदगी के नवरंगों को,
उकेरना बाकी है।
समय तो दिन रात तारीखो़ में गुज़र गया।
अभी तो नव दिवस का,
शुभ आह्वान करना बाकी है।
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