◆ जगत दर्शन साहित्य ◆
● काव्य जगत ●
जिंदगी वही जीते हैं जो जिंदगी को जिंदगी समझते हैं। जिंदगी जरिया है सुख को अनुभव करने का। जीवन उतार-चढ़ाव और सुख दुख से परिपूर्ण है। कुछ लोग इस जीवन में सुख को भूलकर दुख समझ बैठते हैं वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो दुख को भूल जिंदगी को सुखी बना लेते है। यह जीवन कैसे उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण है सभी बयां नहीं कर पाते। हिंदी साहित्य की जानी-मानी कवियित्री किरण बरेली जी ने अपने अनुभव के द्वारा जो कुछ भी हासिल किया उन्हें अपने शब्दों में पिरोने का कोशिश की है। प्रस्तुत है उनके चार मुक्तक
जीवन ऐसे ही जीते रहे: किरण बरेली
1
मन समझ न सका इस जहाँ को,
जीवन ऐसे ही जीते रहे,
मिली नहीं मंज़िले हमें,
कदम सतत चलते रहे,
हर दाँव हारते चले गए,
जीत की ख्वाहिश में जीते रहे।
2
ज़िंदगी को बंद कर,
मुट्ठी में रख लिया था,
रेत की मानिंद फिसली जा रही है,
मेरी खुशियों के सपने
किसने चुरा लिया?
तलाश करते करते,
जिंदगी की शाम हो रही है।
3
उम्मीद की मुँडेर से,
ताकते कब निकले चाँद?
कपसीले बादलों में जाने
कैसे फिसला चाँद?
उनींदी आँखों से
सारी सारी रात ढूँढे चाँद।
दिखलाई कैसी बेरुखी
रूठा रूठा हुआ चाँद।
रात ख्वाब सो गए,
अभी तलक न निकला चाँद,
दूर देश गए हुए
मेरे साजन सुंदर चाँद,
अब आ भी जाओ
मेरे अपने जीवन के चाँद।
4
भारत के ये कर्मठ नौनिहाल
भीड़ की मतलबी दुनिया में मन तन्हा,
फिक्र का असबाब लिए
झूठ फ़रेब के बाज़ार में आ पहुँचे,
सच्चाई का सामान लिए ।
सामानों के साथ इनकी मासूमियत
और लड़कपन भी बिक गया,
जिसे देख,
इन्सानियत बौनी हुई,
और आँखों का पानी मर गया।
★★★★★★★★★★★